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________________ (righteousness deluding karma) is acquired due to lack of faith and interest in religion and other virtues. फ्र कृतकर्म भोगे बिना मोक्ष नहीं NO LIBERATION WITHOUT SUFFERING THE FRUITS OF KARMAS ६. [प्र.] से नूणं भंते ! नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मणूसस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो ? [उ.] हंता, गोयमा ! नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मणूसस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो । प्र.] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति नेरइयस्स वा जाव मोक्खो ? [उ. ] एवं खलु मए गोयमा ! दुविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा-पदेसकम्मे य, अणुभागकम्मे य । तत्थ णं जं तं पदेसकम्मं तं नियमा वेदेति, तत्थ णं जं तं अणुभागकम्मं तं अत्थेगइयं वेदेति, अत्थेगइयं नो वेएइ। णायमेतं अरहता, सुतमेतं अरहता, विण्णायमेतं अरहता - "इमं कम्मं अयं जीवे अब्भोवगमियाए वेणा वेइस्स, इमं कम्मं अयं जीवे उवक्कमियाए वेदणाए बेइस्सइ । अहाकम्मं अहानिकरणं जहा जहा तं भगवता दिट्ठ तहा तहा तं विष्परिणमिस्सतीति । से तेणट्टेणं गोयमा ! नेरइयस्स वा ४ जाव मोक्खो ।" ६ . [ प्र. ] भगवन् ! नारक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य या देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे (वेदे) बिना क्या मोक्ष नहीं होता ? [ उ. ] हाँ, गौतम ! नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना मोक्ष नहीं होता । [प्र. ] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नारक यावत् देव को कृतकर्म भोगे बिना मोक्ष नहीं होता ? [उ.] गौतम ! मैंने कर्म के दो भेद बताए हैं, वे इस प्रकार हैं- प्रदेशकर्म और अनुभागकर्म । इनमें जो प्रदेशकर्म है, वह अवश्य (नियम से) भोगना पड़ता है और जो अनुभागकर्म है, वह कुछ वेदा (भोगा) जाता है, कुछ नहीं वेदा जाता। यह बात अर्हन्त द्वारा ज्ञात है, स्मृत (प्रतिपादित) है, और विज्ञात है, कि यह जीव इस कर्म को आभ्युपगमिक वेदना से वेदेगा और यह जीव इस कर्म को औपक्रमिक वेदना से वेदेगा । बाँधे हुए कर्मों के अनुसार, निकरणों के अनुसार जैसा - जैसा भगवान ने देखा है, वैसा-वैसा वह विपरिणाम पायेगा । इसलिए गौतम ! इस कारण से मैं ऐसा कहता हूँ कि यावत् किये हुए कर्मों को भोगे बिना नारक, तिर्यंच, मनुष्य या देव को मोक्ष नहीं है । 6. [Q.] Bhante ! Do infernal beings, animals, human beings and divine beings attain liberation without experiencing the karmic bondage acquired through sinful deeds? [Ans.] Gautam ! Infernal beings, animals, human beings and divine beings do not attain liberation without experiencing the karmic bondage acquired through sinful deeds. प्रथम शतक : चतुर्थ उद्देशक फ्र Jain Education International (109) For Private & Personal Use Only First Shatak: Fourth Lesson www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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