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प्रथम शतक : चतुर्थ उद्देशक FIRST SHATAK (Chapter One) : FOURTH LESSON (कर्म-) प्रकृति (KARMA) PRAKRITI (KARMA SPECIES)
जध95555555555555555555555555555555555555555555
कर्म-प्रकृतियाँ KARMA SPECIES
१. [प्र. ] कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ?
[उ. ] गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ। कम्मपगडीए पढमो उद्देसो नेयव्यो जाव-अणुभागो सम्मत्तो। गाहा-कति पगडी ? १, कह बंधइ ? २, कतिहिं व ठाणेहिं बंधती पगडी ? ३।
___ कति वेदेति व पगडी ? ४, अणुभागो कतिविहो कस्स ? ५ ॥१॥ १. [प्र. ] भगवन् ! कर्म-प्रकृतियाँ कितनी हैं ?
[उ. ] गौतम ! कर्म-प्रकृतियाँ आठ हैं। यहाँ (प्रज्ञापनासूत्र के) 'कर्म-प्रकृति' नामक तेईसवें पद का के प्रथम उद्देशक (यावत्) अनुभाग तक सम्पूर्ण जान लेना चाहिए।
गाथार्थ-कितनी कर्म-प्रकृतियाँ हैं ? जीव किस प्रकार कर्म बाँधता है ? कितने स्थानों से कर्महै प्रकृतियों को बाँधता है ? कितनी प्रकृतियों का वेदन करता है ? किस प्रकृति का कितने प्रकार का
अनुभाग (रस) है? 4 1. (Q.) Bhante ! How many are the species of karma ?
[Ans.) Gautam ! There are eight species of karma (karma-prakritis). Here 'Karma-prakriti', the first lesson of the twenty third chapter of i Prajnapana Sutra should be read in full up to anubhag.
___The verse-How many are the karma-species (karma prakriti) ? How
does a being acquire bondage ? From how many places comes the Si bondage of karmas ? How many species are experienced ? Which species
has how many types of potencies (anubhag) ? उपस्थान-उपक्रमणादि प्ररूपणा UPWARD MOVEMENT
२. [प्र. १ ] जीवे णं भंते ! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं उवट्ठाएज्जा ? [उ. ] हंता, उवट्ठाएज्जा। [प्र. २ ] से भंते ! किं वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा ? अवीरियत्ताए उवढाएज्जा ? [ उ. ] गोयमा ! वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा, नो अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा।
भगवतीसूत्र (१)
(104)
Bhagavati Sutra (1) 855555555555555555555555554555558
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