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से होता है। फिर चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन, ये दो भेद क्यों बताये हैं? इस प्रकार का समाधान न होने से शंकादि
5 दोषों से ग्रस्त हो जाना । चारित्रान्तर - चारित्र विषयक शंका होना । जैसे- सामायिक चारित्र सर्वसावद्य विरति रूप है
5 और महाव्रतरूप होने से छेदोपस्थापनिक चारित्र भी सावद्यविरति रूप है, फिर दोनों पृथक्-पृथक् क्यों कहे गये हैं?
इस प्रकार की चारित्रविषयक शंका भी कांक्षामोहनीय कर्मवेदन का कारण बनती है। लिंगान्तर-लिंग = वेश के विषय
ज्ञानान्तर - एक ज्ञान से दूसरा ज्ञान। यथा- पाँच ज्ञान क्यों कहे गये ? अवधि और मनःपर्याय ये दो ज्ञान पृथक् क्यों ? इत्यादि ज्ञान के सम्बन्ध में इस प्रकार का सन्देह होना। दर्शनान्तर-सामान्य बोध, दर्शन है। यह इन्द्रिय और मन
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शंका उत्पन्न होना कि बीच के २२ तीर्थंकरों के साधुओं के लिए तो वस्त्र के रंग और परिमाण का कोई नियम नहीं
5 है, फिर प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के साधुओं के लिए श्वेत एवं प्रमाणोपेत वस्त्र रखने का नियम क्यों ? इस प्रकार
5 की वेश (लिंग) सम्बन्धी शंका से कांक्षामोहकर्म वेदन होता है। प्रवचनान्तर - प्रवचनविषयक शंका, जैसे- प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों ने पाँच महाव्रतों का और बीच के २२ तीर्थंकरों ने चार महाव्रतों का प्रतिपादन किया, तीर्थकरों में
यह प्रवचन (वचन) भेद क्यों ? प्रावचनिकान्तर- प्रावचनिक का अर्थ है - प्रवचनों का ज्ञाता या अध्येता; बहुश्रुत साधक । फ्र 5 दो प्रावचनिकों के आचरण में भेद देखकर शंका उत्पन्न होना । कल्पान्तर - जिनकल्प, स्थविरकल्प आदि कल्प वाले मुनियों का आचार-भेद देखकर शंका करना कि यदि जिनकल्प कर्मक्षय का कारण है तो स्थविरकल्प का उपदेश क्यों ? मार्गान्तर-मार्ग का अर्थ है-परम्परागत समाचारी पद्धति । भिन्न समाचारी देखकर शंका करना कि यह ठीक है 5 या वह ? मतान्तर - भिन्न-भिन्न आचार्यों के विभिन्न मतों को देखकर शंका करना । भंगान्तर- द्रव्यादि संयोग से होने वाले 5 भंगों को देखकर शंका उत्पन्न होना । नयान्तर - एक ही वस्तु में विभिन्न नयों की अपेक्षा से दो विरुद्ध धर्मों का कथन 5 देखकर शंका होना । नियमान्तर- साधु-जीवन में सर्वसावद्य का प्रत्याख्यान होता ही है, फिर विभिन्न नियम क्यों; इस प्रकार शंकाग्रस्त होना । प्रमाणान्तर - आगमप्रमाण के विषय में शंका होना । जैसे-सूर्य पृथ्वी में से निकलता दीखता है परन्तु आगम में कहा है कि पृथ्वी से ८०० योजन ऊपर संचार करता है आदि। (वृत्ति, पत्रांक ६०-६२)
॥ प्रथम शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
Elaboration-Technical terms in aphorism 14/3-Tark-process of rational thinking, such as “ This should be like this.” Sanjna-awareness of 5 input through sense organs. Prajna-intelligence enriched by new 5 information. Man-mental faculty having memory and ability to 5 contemplate; it is a limb of mati jnana (ability to know the apparent form of things coming before the soul by means of five sense organs and the mind). Gautam Swami's inquiry about ascetics is based on the accepted belief that the mind of an ascetic gets purified due to study of Agams,
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how then can they suffer kanksha mohaniya karma ? The technical
terms included in the answer are explained as follows
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Jnanantar (diverse knowledge)-The doubts arising out of the awareness about diverse kinds of knowledge, such as why there are five kinds of knowledge? Why are avadhi and manah-paryav jnana 5 (extrasensory perception of the physical dimension and extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of other
5 beings) different. Darshanantar (diverse perception ) - doubts such as
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Bhagavati Sutra (1)
卐 भगवतीसूत्र (१)
(102)
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