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द्वारा शंकित, कांक्षित, विचिकित्सित, भेदसमापन और कलुषसमापन्न होकर श्रमण निर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं।
[Q.2] Bhante ! How do the Shraman Nirgranths experience kanksha mohaniya karma ?
[Ans.) Due to all the said causes ascetics also experience or suffer kanksha mohaniya karma plagued by doubt, desire for other faith. incredulity, disjunction and spite under the influence of diverse knowledge (jnanantar), diverse perception/faith (darshanantar), diverse conduct (chaaritrantar), diverse dress code (lingantar), diverse sermon (pravachanantar), diverse preceptor (pravachanikantar), diverse special codes (kalpantar), diverse praxis (margantar), diverse views (matantar), diverse alternatives (bhangantar), diverse stand-points (nayantar), diverse rules (niyamantar) and diverse authenticity (pramanantar).
[प्र. ३ ] से नूणं भंते ! तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं ? [उ. ] हंता, गोयमा ! तमेव सच्चं नीसंकं जाव पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०
॥ पढमे सए : तइओ उद्देसो समत्तो ॥ [प्र. ३ ] भगवन् ! क्या वही सत्य और निःशंक है, जो जिन-भगवन्तों ने प्ररूपित किया है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! वही सत्य है, निःशंक है, जो जिन-भगवन्तों ने प्ररूपित किया है, यावत् पुरुषकार-पराक्रम से निर्जरा होती है।
भगवन् ! यह ऐसा ही है, यावत् पर ऐसा ही है।
[Q.3] Bhante ! Is that alone is true and beyond doubt which has been propounded by Jinas ?
(Ans.] Yes, Gautam ! That alone is true and beyond doubt which has been propounded by Jinas... and so on up to... sheds by self-exertion purushakar-parakram).
“Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so.”
विवेचन : सूत्र १/३ में आये तर्क आदि शब्दों की व्याख्या-'यह इस प्रकार होगा', इस प्रकार के विचारवमर्श या ऊहापोह को तर्क कहते हैं। संज्ञा का अर्थ है-अर्थावग्रहरूप ज्ञान। प्रज्ञा का अर्थ है-नई-नई स्फुरणा राला विशिष्ट ज्ञान या बुद्धि । स्मरण एवं मनन रूप मतिज्ञान के भेद को मन कहते हैं। __ श्रमण निर्ग्रन्थों की बुद्धि आगमों के परिशीलन से शुद्ध हो जाती है, फिर उन्हें कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन से हो सकता है ? इस आशय से गौतम स्वामी का प्रश्न है। तद्गत शब्दों का अर्थ इस प्रकार है
प्रथम शतक : तृतीय उद्देशक
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First Shatak : Third Lesson
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