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to realize that 'we are suffering or experiencing kanksha mohaniya karma' but still they do experience.
[प्र.४ ] से णूणं भंते ! तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं ?
[उ.] सेसं तं तेव जाव पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा । [५] एवं जाब चउरिंदिया | [ ६ ] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वेमाणिया जहा ओहिया जीवा ।
[प्र. ४ ] भगवन् ! क्या वही सत्य और निःशंक है, जो जिन- भगवन्तों द्वारा प्ररूपित है ? [उ. ] हाँ, गौतम ! यह सब पहले के समान जानना चाहिए- यावत्-पुरुषकार - पराक्रम से निर्जरा है । [ ५ ] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जानना चाहिए। [ ६ ] जैसे सामान्य जीवों के विषय में कहा है, वैसे ही पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिक जीवों से लेकर यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए।
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[Ans.] Yes, Gautam ! All the remaining information should be read as 5 5 aforesaid... up to... sheds by self-exertion (purushakar-parakram). [5] All 5 this is applicable to all beings up to four-sensed beings. [6] All that has f been stated in this regard about living beings in general is applicable to 5 living beings starting from five-sensed beings right up to Vaimaniks.
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[Q. 4] Bhante ! Is that alone is true and beyond doubt which has been 5 propounded by Jinas?
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श्रमणों के कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन EXPERIENCE OF KANKSHA MOHANIYA KARMA BY ASCETICS १५. [१] अस्थि णं भंते ! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति ?
[उ. ] हंता, अत्थि ।
१५. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या श्रमण निर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ?
[ उ. ] हाँ, गौतम ! वे भी वेदन करते हैं।
15. [Q. 1] Bhante ! Do the Shraman Nirgranths (Jain ascetics) also experience kanksha mohaniya karma?
[Ans.] Yes, Gautam ! They do.
[प्र. २ ] कहं णं भंते ! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति ?
[उ. ] गोयमा ! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं दंसणंतरेहिं चरितंतरेहिं लिंगंतरेहिं पवयणंतरेहिं पावयणंतरेहिं कप्पंतरेहिं मग्गंतरेहिं मतंतरेहिं भंगंतरेहिं नयंतरेहिं नियमंतरेहिं पमाणंतरेहिं संकिया कंखिया
वितिगिच्छिता भेदसमावन्ना, कलुससमावन्ना, एवं खलु समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति ।
[प्र. २ ] भगवन् ! श्रमण निर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन किस प्रकार करते हैं ?
[उ.] गौतम ! उन-उन कारणों से ज्ञानान्तर, दर्शनान्तर, चारित्रान्तर, लिंगान्तर, प्रवचनान्तर, प्रवचनिकान्तर, कल्पान्तर, मार्गान्तर, मतान्तर, भंगान्तर, नयान्तर, नियमान्तर और प्रमाणान्तरों के
भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1)
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