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are pacified, karmas that have fructified are experienced and karmas that have already been fructified and experienced (udayanantar pashchaatkrit) are shed. (Vritti, leaves 58-59)
नैरयिकादि में कांक्षामोहनीय KANKSHA MOHANIYA IN INFERNAL BEINGS AND OTHERS
१४. [ प्र. १ ] नेरइया णं भंते ! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति ?
[उ. ] जहा ओहिया जीवा तहा नेरइया जाव थणियकुमारा ।
१४. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! वेदन करते हैं। सामान्य ( औधिक) जीवों के सम्बन्ध में जैसे आलापक कहे थे, वैसे ही नैरयिकों के सम्बन्ध में यावत् स्तनितकुमारों (दसवें भवनपतिदेवों) तक समझ लेने चाहिए।
14 [Q. 1] Bhante ! Do the infernal beings experience kanksha mohaniya karma?
[Ans.] Yes, Gautam ! They do. Here the general statements about living beings should be repeated for beings belonging to dandaks (places of suffering) up to Stanit Kumars (gods of tenth abode).
[प्र.२ ] पुढविक्काइया णं भंते ! कंखामोहणिज्जं कमं वेदेंति ?
[उ.] हंता, वेदेंति ।
[प्र. ३ ] कहं णं भंते ! पुढविक्काइया कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति ?
[उ.] गोयमा ! तेसि णं जीवाणं णो एवं तक्का इ वा सण्णा इ वा पण्णा इ वा मणे इ वा वई तिवा 'अम्हे णं कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेमो' वेदेंति पुण ते ।
[प्र. २ ] भगवन् ? क्या पृथ्वीकायिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ?
[उ.] हाँ, गौतम ! वे वेदन करते हैं।
[प्र. ३ ] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव किस प्रकार कांक्षा मोहनीयकर्म का वेदन करते हैं ?
[उ.] गौतम ! उन जीवों को ऐसा तर्क, संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन नहीं होता कि 'हम कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं'; किन्तु वे उसका वेदन अवश्य करते हैं।
[Q. 2] Bhante ! Do the earth-bodied beings (prithvikayik jivas) experience kanksha mohaniya karma?
[Ans.] Yes, Gautam ! They do.
[Q. 3] Bhante How do the earth-bodied beings (prithvikayik jivas) experience kanksha mohaniya karma?
[Ans.] Gautam ! Those beings are not endowed with rationality (tark), awareness (sanjna), intelligence (prajna), mind (man) or speech (vachan)
प्रथम शतक : तृतीय उद्देशक
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First Shatak: Third Lesson
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