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[उ.] हाँ, गौतम ! यहाँ भी उसी प्रकार 'पूर्ववत्' कहना चाहिए। विशेषता यह है कि अनुदीर्ण (उदय में नहीं आये हुए) का उपशम करता है, शेष तीनों विकल्पों का निषेध करना चाहिए।
[प्र. २ ] भगवन् ! जीव यदि अनुदीर्ण कर्म का उपशम करता है, तो क्या उत्थान से यावत् पुरुषकार-पराक्रम से करता है या अनुत्थान से यावत् अपुरुषकार-पराक्रम से करता है? [उ. ] गौतम ! पूर्ववत् जानना-यावत् पुरुषकार-पराक्रम से उपशम करता है।
11. [Q. 1] Bhante ! Does a being pacify (upasham) this (kanksha mohaniya karma) himself ? Does he censure (garha) it himself ? And does he block the inflow himself? ___[Ans.] Yes, Gautam ! Here the aforesaid should be repeated with the addition that he pacifies those karmas that have not matured but tend to mature (udiranabhavik). The other three alternatives should be negated.
[Q.2] Bhante! When he pacifies those karmas that have not matured, does he do so by rise (utthaan), ... and so on up to... self-exertion (purushakar-parakram) or by non-rise (anutthaan), ... and so on up to... non-self-exertion (apurushakar-parakram)?
[Ans.] Gautam ! Here too the aforesaid should be repeated up to pacifies by self-exertion (purushakar-parakram).
१२. [प्र. ] से नूणं भंते ! अप्पणा चेव वेदेइ अप्पणा चेव गरहइ ?
[उ. ] एत्थ वि स च्चेव परिवाडी। नवरं उदिण्णं वेएइ, नो अणुदिण्णं वेइए। एवं पुरिसक्कारपरक्कमे इवा।
१३. [प्र.] से नूणं भंते ! अप्पणा चेव निजरेइ अप्पणा चेव गरहइ ? [उ. ] एत्थ वि स च्चेव परिवाडी। नवरं-उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं निजरेइ, एवं जाव परक्कमे इ वा। १२. [प्र. ] भगवन् ! क्या जीव अपने आप से ही वेदन करता है और गर्दा करता है ?
[उ. ] गौतम ! यहाँ भी पूर्वोक्त समस्त परिपाटी पूर्ववत् समझनी चाहिए। विशेषता यह है कि उदीर्ण को वेदता है, अनुदीर्ण को नहीं वेदता। इसी प्रकार यावत् पुरुषकार-पराक्रम से वेदता है, अनुत्थानादि से नहीं वेदता है।
१३. [प्र. ] भगवन् ! क्या जीव अपने आप से ही निर्जरा करता है और गर्दा करता है ? ___ [उ. ] गौतम ! यहाँ भी समस्त परिपाटी 'पूर्ववत्' समझनी चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म की निर्जरा करता है। इसी प्रकार यावत् पुरुषकार-पराक्रम से निर्जरा और गर्दा करता है। इसलिए उत्थान यावत् पुरुषकार-पराक्रम है।
प्रथम शतक : तृतीय उद्देशक
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First Shatak : Third Lesson |
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