________________
卐555555555555555555555555555555555555555555555558
口555555555555555555555555555555555555
_[उ.] गोयमा ! तं उट्ठाणेण वि कम्मेण वि बलेण वि वीरिएण वि पुरिसक्कारपरक्कमेण विज + अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ, णो तं अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं फ अपुरिसक्कारपरक्कमेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ। एवं सति अत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा।
[प्र. ३ ] भगवन् ! यदि जीव अनुदीर्ण-उदीरणाभविक कर्म की उदीरणा करता है, तो क्या उत्थान से, कर्म से, बल से, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम से उदीरणा करता है, अथवा अनुत्थान से, अकर्म से
और अबल से. अवीर्य और अपरुषकार-पराक्रम से उदीरणा करता है? __[उ. ] गौतम ! वह अनुदीर्ण-उदीरणाभविक कर्म की उदीरणा उत्थान से, कर्म से, बल से, वीर्य से 5 और पुरुषकार-पराक्रम से करता है, (किन्तु) अनुत्थान से, अकर्म से, अबल से, अवीर्य से और
अपुरुषकार-पराक्रम से उदीरणा नहीं करता। अतएव उत्थान है, कर्म है, बल है, वीर्य है और ॐ पुरुषकार-पराक्रम है।
(Q. 3) Bhante ! When he fructifies those karmas that have not matured but tend to mature (udiranabhavik), does he do so by rise (utthaan), action (karma), strength (bal), potency (virya) and selfexertion (purushakar-parakram) or by non-rise (anutthaan), non-action (akarma), non-strength (abal), non-potency (avirya) and non-self exertion (apurushakar-parakram)?
(Ans.] Gautam ! He fructifies those karmas that have not matured but tend to mature (udiranabhavik) by rise (utthaan), action (karma), ॐ strength (bal), potency (virya) and self-exertion (purushakar-parakram)
and not by non-rise (anutthaan), non-action (akarma), non-strength (abal), non-potency (avirya) and non-self-exertion (apurushakar.
parakram). Therefore rise (utthaan), action (karma), strength (bal), 4i potency (virya) and self-exertion (purushakar-parakram) are valid.
११. [प्र. १] से णूणं भंते ! अप्पणा चेव उवसामेइ, अप्पणा चेव गरहइ, अप्पणा चेव संवरेइ ?
[उ. ] हंता, गोयमा ! एत्थ वि तं चेव भाणियव्वं, नवरं अणुदिण्णं उवसामेइ, सेसा पडिसेहेयव्वा तिण्णि।
[प्र. २ ] जं तं भंते ! अणुदिण्णं उवसामेइ तं किं उट्ठाणेणं ? [उ. ] जाव पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा।
११. [प्र. १] भगवन् ! क्या वह अपने आप से ही (कांक्षामोहनीयकर्म का) उपशम करता है, ॐ अपने आप से ही गर्दा करता है और अपने आप से ही संवर करता है ?
भगवतीसूत्र (१)
(96)
Bhagavati Sutra (1)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org