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[उ. ] गोयमा ! सरीरप्पवहे। [प्र. ५ ] से णं भंते ! सरीरे किं पवहे ?
[उ. ] गोयमा ! जीवप्पवहे। एवं सति अस्थि उट्ठाणे ति वा, कम्मे ति वा, बले ति वा, वीरिए ति वा, पुरिसक्कार-परक्कमे ति वा।
८. [प्र. ] भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म बाँधते हैं ? [उ. ] हाँ, बाँधते हैं। ९.[प्र.१] भगवन् ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बाँधते हैं ? [उ.] गौतम ! प्रमाद के कारण और योग के निमित्त से। [प्र. २ ] भगवन् ! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ? [उ. ] गौतम ! प्रमाद योग से उत्पन्न होता है। [प्र. ३ ] भगवन् ! योग किससे उत्पन्न होता है? [उ. ] गौतम ! योग वीर्य से उत्पन्न होता है। [प्र. ४ ] भगवन् ! वीर्य किससे उत्पन्न होता है ? [उ. ] गौतम ! वीर्य शरीर से उत्पन्न होता है। [प्र. ५ ] भगवन् ! शरीर किससे उत्पन्न होता है ? [उ. ] गौतम ! शरीर जीव से उत्पन्न होता है और ऐसा होने में जीव का उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम होता है।
8. (Q.) Bhante ! Do living beings acquire bondage of kanksha mohaniya karma ?
(Ans.] Yes, they do.
9. [Q. 1] Bhante ! How do living beings acquire bondage of kanksha mohaniya karma ?
[Ans.) Gautam ! Due to stupor (pramad) and through association (yoga; by body, speech and mind).
[Q.2] Bhante ! What is the origin of stupor ? [Ans.] Gautam ! Stupor originates from association (yoga). [Q. 3) Bhante ! What is the origin of association (yoga) ? [Ans.] Gautam ! Association originates from potency (virya). [Q.4] Bhante ! What is the origin of potency (virya)?
प्रथम शतक: तृतीय उद्देशक
(93)
First Shatak: Third Lesson
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