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५. [प्र. ] भगवन् ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म को किस प्रकार वेदते हैं ? ___ [उ.] गौतम ! उन-उन (अमुक-अमुक) कारणों से शंकायुक्त, कांक्षायुक्त, विचिकित्सायुक्त, भेदसमापन एवं कलुषसमापन्न होकर; जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं।
5. (Q.) Bhante ! How do living beings experience (the fruits of) kanksha-mohaniya karmas ?
(Ans.] Gautam ! Living beings experience (the fruits of) kankshamohaniya karmas for various causes that poison their mind with doubt (shanka yukt), desire for other faith (kanksha yukt), incredulity (vichikitsa yukt), disjunction (bhed samapanna) and spite (kalush samapanna). आराधक-स्वरूप TRUE FOLLOWER
६. [प्र. १ ] से नूणं भंते ! तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं ? [उ. ] हंता, गोयमा ! तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं। ६. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या वही सत्य और निःशंक है, जो जिन भगवन्तों ने कहा है ? [उ. ] हाँ, गौतम ! वही सत्य और निःशंक है, जो जिनेश्वरदेव द्वारा प्ररूपित है।
6. [Q. 1] Bhante ! Is that alone true and beyond doubt which has been propounded by Jinas? ___ [Ans.] Yes, Gautam ! Only that is true and beyond doubt which has been propounded by Jinas.
[प्र. २ ] से नूणं भंते ! एवं मणं धारेमाणे, एवं पकरेमाणे एवं चिटेमाणे, एवं संवरेमाणे आणाए आराहए भवति ?
[उ. ] हंता, गोयमा ! एवं मणं धारेमाणे जाव भवति।
[प्र. २ ] भगवन् ! (वही सत्य और निःशंक है) इस प्रकार मन में निश्चय करता हुआ, उसी तरह आचरण करता हुआ, कहता हुआ, इसी तरह संवर करता हुआ जीव क्या आज्ञा का आराधक होता है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! इसी प्रकार मन में निश्चय करता हुआ यावत् आज्ञा का आराधक होता है।
[Q.2] Bhante ! By resolutely accepting the aforesaid, by translating it into his conduct, by saying so and thereby blocking the inflow of karmas does a living being become a true follower (aaraadhak) of the commands (of Jina)?
(Ans.] Yes, Gautam ! By resolutely accepting the aforesaid, ... and so on up to... a living being becomes a true follower (aaraadhak) of the commands (of Jina). .
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First Shatak: Third Lesson
प्रथम शतक : तृतीय उद्देशक 5%%%%%% %%%
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