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# (१) अशून्यकाल-आदिष्ट (वर्तमान में नियत) समय वाले नारकों में से एक भी नारक जब तक मरकर नहीं से निकलता है और न कोई नया जन्म लेता है, तब तक का काल अशून्यकाल है। अर्थात्-अमुक वर्तमानकाल में
सातों नरकों में जितने भी जीव विद्यमान हैं, उनमें से न कोई जीव मरे, न ही नया उत्पन्न हो, यानी उतने के। में उतने ही जीव जितने समय तक रहें, उस समय को नरक की अपेक्षा अशून्यकाल कहते हैं। (२) शून्यकालमें वर्तमानकाल के समादिष्ट (नियत) नारकों में से समस्त नारक नरक से निकल जायें, एक भी नारक शेष न रहे, ५ है और न ही उनके स्थान पर सभी नये नारक पहुँचें तब तक का काल नरक की अपेक्षा शून्यकाल कहलाता है।
तिर्यंचयोनि में शून्यकाल नहीं है, क्योंकि तिर्यंचयोनि में अकेले वनस्पतिकाय के ही जीव अनन्त हैं, वे सबके * सब उसमें से निकलकर नहीं जाते। शेष तीनों गतियों में तीनों प्रकार के संसार-संस्थानकाल हैं। (३) मिश्रकाल5 वर्तमानकाल के इन नारकों में से एक, दो, तीन इत्यादि क्रम से निकलते-निकलते जब एक भी नारक शेष रहे, का अर्थात् विद्यमान नारकों में से जब एक का निकलना प्रारम्भ हुआ, तब से लेकर जब तक नरक में एक नारक - शेष रहा, तब तक बीच के समय को नरक की अपेक्षा मिश्रकाल कहते हैं। के तीनों कालों का अल्प-बहुत्व-अशून्यकाल अर्थात् विरहकाल की अपेक्षा मिश्रकाल को अनन्तगुणा इसलिए + कहा है कि अशून्यकाल तो सिर्फ बारह मुहूर्त का है, जबकि मिश्रकाल वनस्पतिकाय में गमन की अपेक्षा
अनन्तगुणा है। नरक के जीव जब तक नरक में रहें, तभी तक मिश्रकाल नहीं, वरन् नरक के जीव नरक से । ॐ निकलकर वनस्पतिकाय आदि तिर्यंच तथा मनुष्य आदि गतियों-योनियों में जन्म लेकर फिर पुनः नरक में आवें ! के तब तक का काल मिश्रकाल है और शून्यकाल मिश्रकाल से भी अनन्तगुणा इसलिए कहा गया है कि नरक के
जीव नरक से निकलकर वनस्पति में आते हैं, जिसकी स्थिति अनन्तकाल की है। म तिर्यंचों की अपेक्षा अशून्यकाल सबसे कम है। संज्ञी तिर्यंचपंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट विरहकाल १२ मुहूर्त का, ।
तीन विकलेन्द्रिय और सम्मूर्छिम तिर्यंचपंचेन्द्रिय का अन्तमुहूर्त का, पाँच स्थावर जीवों में समय-समय में :
परस्पर एक-दूसरे से असंख्य जीव उत्पन्न होते हैं, अतः उनमें विरहकाल नहीं है। (वृत्ति, पत्रांक ४७-४८) 6 Elaboration—The reason for the question-Some people believed that y 5 after death an animal is reborn only as animal and a human being is
reborn only as a human being; it does not take rebirth as divine or infernal being. Even after infinite rebirths a being remains in the same class. In order to remove this misconception Gautam Swami raised this question that when a being moves in its cycles of rebirths from one genus y to another, since the beginning of time how many different genuses it has passed through in the past?
Samsar samsthan kaal—The act of passage from one birth to another and the duration of existence there is called samsar samsthan kaal or y i world-specific period of rebirth and existence. It is of three kinds- ५
Shunya kaal (period of complete replacement), Ashunya kaal (period of absolute non-replacement) and Mishra kaal (period of gradual replacement just short of complete replacement).
(1) Ashunya kaal (period of absolute non-replacement)—The period till neither a single infernal being from among those living at present in all प्रथम शतक: द्वितीय उद्देशक
(73)
First Shatak : Second Lesson
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