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________________ 259595955555 5 5 55 5595555555595 5555555 59595959595952 卐 卐 ११. वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक के आहारादि के सम्बन्ध में सब वर्णन असुरकुमारों के 卐 卐 फ्र 5 मायी - मिथ्यादृष्टि के रूप में उत्पन्न हुए हैं, वे अल्प वेदना वाले हैं, और जो अमायी- सम्यग्दृष्टि के रूप में 卐 उत्पन्न हुए हैं, वे महावेदना वाले होते हैं। 卐 卐 卐 समान समझना चाहिए। विशेषता यह है कि इनकी वेदना में भिन्नता है। ज्योतिष्क और वैमानिकों में जो फ्र 卐 11. The details about intake and other things of Vanavyantar 5 (interstitial ), Jyotishk (stellar) and Vaimanik (celestial vehicle dwelling) 5 फ्र gods are similar to those mentioned about Asur Kumars. The only difference is about their pain. Among Jyotishk and Vaimanik gods those born as deceitful and unrighteous experience less suffering and those born as non-deceitful and righteous experience great suffering. फ्र चौबीस दण्डकों में लेश्या विचार LESHYA IN TWENTY FOUR DANDAKS १२. [ प्र. ] सलेसा णं भंते! नेरइया सव्वे समाहारगा ? [ उ. ] ओहियाणं, सलेसाणं, सुक्कलेसाणं, एएसि णं तिन्हं एक्को गमो । कण्हलेस नीललेसाणं पि एक्को गमो, नवरं वेदणाए - मायिमिच्छादिट्ठीउववन्नगा य, अमायिसम्मद्दिट्ठीउववण्णगा य भाणियव्या । जहा ओहिए दंड तहा भाणियव्वा । तेउलेसा पम्हलेसा जस्स अत्थि जहा ओहिओ दंडओ तहा भाणियव्या, 卐 नवरं मणुस्सा सरागा वीयरागा य न भाणियव्या । गाहा- दुक्खाऽऽउए उदिण्णे, आहारे, कम्म-वण्ण - लेसा य समवेदण समकिरिया समाउए चेव बोद्धव्या ॥१ ॥ मस्सा किरियासु सराग - वीयराग - पमत्तापमत्ता ण भाणियव्वा । काउलेसाण वि एसेव गमो, नवरं नेरइए १२. [ प्र. ] भगवन् ! क्या लेश्या वाले समस्त नैरयिक समान आहार वाले होते हैं ? [ उ. ] गौतम ! औधिक (सामान्य), सलेश्य एवं शुक्ललेश्या वाले इन तीनों का एक समान पाठ 5 कहना चाहिए। कृष्णलेश्या और नीललेश्या वालों का एक समान पाठ कहना चाहिए, किन्तु उनकी वेदना में इस प्रकार भेद है - मायी - मिथ्यादृष्टि 卐 5 चाहिए। तथा कृष्णलेश्या और नीललेश्या (के सन्दर्भ) में मनुष्यों के समान सरागसंयत, वीतरागसंयत, फ्र 卐 - उपपन्नक और अमायी - सम्यग्दृष्टि - उपपन्नक कहने प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत भेद नहीं कहना चाहिए। तथा कापोतलेश्या में भी यही पाठ कहना 卐 फ चाहिए । भेद यह है कि कापोतलेश्या वाले नैरयिकों को औधिक दण्डक के समान कहना चाहिए । 5 तेजोलेश्या और पद्मलेश्या वालों को भी औधिक दण्डक के समान कहना चाहिए। विशेषता यह है कि इनमें मनुष्यों के समान सराग और वीतराग का भेद नहीं कहना चाहिए; क्योंकि तेजोलेश्या और पद्मलेश्या वाले सराग ही होते हैं। गाथार्थ–दुःख (कर्म) और आयुष्य उदीर्ण हो तो वेदते हैं। आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया और आयुष्य, इन सबकी समानता के सम्बन्ध में पहले कहे अनुसार ही समझना चाहिए। भगवतीसूत्र ( १ ) Jain Education International (64) கதித்தமிமிமிமிமித மிதிதONழபூபூபூபூபூபூமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிழி 5 Bhagavati Sutra (1) For Private & Personal Use Only மிதிததமி******************************* 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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