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have four activities (including Apratyakhyana kriya). The Mithyadrishti (unrighteous) and Samyag-mithyadrishti (mixed) have all the five activities including Mithyadarshanapratyayaa). मनुष्य-देव समानत्व चर्चा SIMILARITIES IN HUMAN AND DIVINE BEINGS
१०. [१] मणुस्सा जहा नेरइया (सूत्र ५)। नाणतं-जे महासरीरा से आहच्च आहारेंति। जे अप्पसरीरा ते अभिक्खणं आहारेंति ४। सेसं जहा नेरइयाणं जाव वेयणा।
१०. [१] मनुष्यों का आहारादि सम्बन्धित निरूपण नैरयिकों के समान (सूत्र ५ के अनुसार) म समझना चाहिए। उनमें अन्तर इतना ही है कि जो महाशरीर वाले हैं, वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं,
और वे कभी-कभी आहार करते हैं. इसके विपरीत जो अल्प शरीर वाले हैं. वे अल्प पदगलों का आहार करते है और बार-बार करते हैं। शेष वेदना पर्यन्त सब वर्णन नारकों के समान समझना चाहिए।
10. [1] The details about intake and other things of human beings 1 (manushya) are also similar to those mentioned about infernal beings
(aphorism 5). The only difference is that those with large bodies have intake of large number of matter particles and it is infrequent, on the other hand those with small bodies have intake of meager number of matter particles and it is frequent. Remaining description up to pain is the same as that of infernal beings.
[प्र. २ ] मणुस्सा णं भंते ! सम्बे समकिरिया ? [उ. ] गोयमा ! णो इणढे समढे।
[प्र. ] से केणटेणं ? ॐ [उ. ] गोयमा ! मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता। तं जहा-सम्मद्दिवी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी। तत्थ णं,
जे ते सम्मद्दिट्टी ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-संजता अस्संजता संजतासंजता य। तत्थ णं जे ते संजता ते 5 है दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सरागसंजता य वीतरागसंजता या तत्थ णं जे ते वीतरागसंजता ते णं अकिरिया। ॐ तत्थ णं जे ते सरागसंजता ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पमत्तसंजता य अपमत्तसंजता य। तत्थ णं जे ते * अप्पमत्तसंजता तेसि णं एगा मायावत्तिया किरिया कजंति। तत्थ णं जे ते पमत्तसंजता तेसि णं दो 9 किरियाओ कज्जंति, तं जहा-आरम्भिया य १ मायावत्तिया य २। तत्थ णं जे ते संजतासंजता तेसि णं
आइल्लाओ तिनि किरियाओ कजंति। अस्संजताणं चत्तारि किरियाओ कज्जंति-आरं. ४। मिच्छादिट्ठीणं पंच। सम्मामिच्छादिट्ठीणं पंच ५।
[प्र. २ ] भगवन् ! क्या सब मनुष्य समान क्रिया वाले हैं ? __[उ. ] गौतम ! यह अर्थ सम्भव नहीं है।
[प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ?
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Bhagavati Sutra (1)
भगवतीसूत्र (१)
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