________________
95555555555555555555555555555555
९.[१] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया। नाणत्तं किरियासु।
९. [१] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के आहारादि के सम्बन्ध में कथन भी नैरयिकों के समान समझना चाहिए; केवल क्रियाओं में भिन्नता है।
9. [1] The details about intake and other things of five sensed animals (Panchendriya Tiryanchayonik jivas) are also similar to those mentioned about infernal beings. The only difference is about activities.
[प्र. २ ] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? [उ. ] गोयमा ! णो इणढे समढे। [प्र. ] से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ ?
[उ. ] गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता। तं जहा-सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी। तत्थं णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अस्संजता य, संजताऽसंजता य। तत्थ णं जे ते संजताऽसंजता तेसि णं तिन्नि किरियाओ कज्जंति, तं जहा-१ आरंभिया २ परिग्गहिया ३ मायावत्तिया। असंजताणं चत्तारि। मिच्छादिट्ठीणं पंच। सम्मामिच्छादिट्ठीणं पंच।
[प्र. २ ] भगवन् ! क्या सभी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव समान क्रिया वाले हैं ? [उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [प्र. ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव तीन प्रकार के होते हैं, यथा-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्-मिथ्यादृष्टि। उनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे दो प्रकार के हैं, जैसे कि-असंयत और संयतासंयत। उनमें जो संयतासंयत हैं, उन्हें तीन क्रियाएँ लगती हैं। वे इस प्रकार-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी और मायाप्रत्यया। उनमें जो असंयत हैं, उन्हें अप्रत्याख्यानी क्रिया सहित चार क्रियाएँ लगती हैं। जो मिथ्यादृष्टि तथा सम्यग्-मिथ्यादृष्टि हैं, उन्हें पाँचों क्रियाएँ लगती हैं।
[0.2] Bhante ! Do all five sensed animals have the same activities (kriya)?
[Ans.] Gautam ! That is not possible [Q.] Bhante ! Why do you say so ?
[Ans.] Gautam ! Five sensed animals are said to be of three kindsSamyagdrishti (righteous), Mithyadrishti (unrighteous) and Samyag
mithyadrishti (mixed). The Samyagdrishti (righteous) are of two kinds-asamyat (indisciplined) and samyatasamyat (disciplined-cumindisciplined). Of these the samyatasamyat have three activities(1) Arambhiki, (2) Parigrahiki, and (3) Maayapratyayaa. The asamyat
प्रथम शतक : द्वितीय उद्देशक
(61)
First Shatak: Second Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org