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[प्र.] से केणटेणं ?
[उ. ] गोयमा ! पुढविक्काइया सब्बे माई मिच्छादिट्ठी, ताणं नियइयाओ पंच किरियाओ कजंति, तं जहा-१ आरंभिया जाव ५ मिच्छादसणवत्तिया। से तेणटेणं समकिरिया। समाउया, समोववन्नगा जहा ॐ नेरइया तहा भाणियव्या।
[प्र. ३ ] भगवन् ! क्या सभी पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले हैं ? [उ. ] हाँ, गौतम ! वे सभी समान क्रिया वाले हैं। [प्र. ] भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! सभी पृथ्वीकायिक जीव मायी और मिथ्यादृष्टि हैं। इसलिए उन्हें आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया निश्चित रूप से पाँचों क्रियाएँ लगती हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले हैं। जैसे नारक जीवों में समायुष्क और समोपपन्नक आदि चार भंग कहे हैं, वैसे ही पृथ्वीकायिक जीवों में भी कहने चाहिए।
[Q. 3] Bhante ! Do all earth-bodied beings have the same activities (kriya)?
[Ans.] Yes, Gautam! They have the same activities. [Q.] Bhante ! Why do you say so?
[Ans.] Gautam ! All earth-bodied beings are maayi (deceitful) and mithyadrishti (unrighteous) and therefore as a rule they have all five activities from arambhiki (act of violence) to Mithyadarshanapratyayaa (activity involved in indulgence in false perception/faith). That is why, Gautam ! it is said that all earth-bodied beings have the same activities. The four classifications of same life-span and simultaneous genesis stated about infernal beings should be repeated here about earth-bodied beings.
८. जहा पुढविक्काइया तहा जाव चउरिदिया।
८. जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के आहारादि के सम्बन्ध में निरूपण किया है, उसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तक के जीवों के 5 सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए।
8. The details about intake and other things mentioned about earthbodied beings are also applicable to beings from apkaya (water-bodied beings), tejaskaya (fire-bodied beings), vayukaya (air-bodied beings), 5 vanaspatikaya (plant-bodied beings), dvindriya (two-sensed beings), trindriya (three-sensed beings) and chaturindriya (four-sensed beings).
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भगवतीसूत्र (१)
(60)
Bhagavati Sutra (1)
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