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महाबल मलया सुन्दरी कुछ दिन बाद प्रतिष्ठानपुर में अचानक महामारी फैल गई। राजा ने वैद्यों को बुलाया। तांत्रिकों से अनुष्ठान करवाया। परन्तु महामारीपर काबू नहीं हो सका। सबने अपने-अपने विचाररखे। ( महाराज ! लगता है कोई दुष्ट आत्मा )
आप सब कोई दैवीय प्रकोप है।
का प्रभाव है। मिलकर कोई
उपाय कीजिए।
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संध्या केसमय राजा महलें वापस आ गया। राजा को अकेले विचार करते देख कनकमाला आई और बोली
महाराज ! मुझे बताते हुए शर्म आ रही है, आपकी " पुत्रवधू मलया मानवी नहीं राक्षसी है, जादूगरनी है। रात
को राक्षसी का रूप लेकर निर्दोष नागरिकों का खून पीती है। यही महामारी है।
नहीं! नहीं! मेरी बहू ऐसी नहीं हो सकती। तुम्हें इसका प्रमाण
देना पड़ेगा।
मावा
महाराज ! रात के दूसरे प्रहर में आप स्वयं अपनी आँखों से देख लीजिए।
रात को कनकमाला ने राक्षसी कारूप बनाया। वह महल के आँगन में एक हाथ में खप्पर, एक हाथ में तलवार लिये उछल-कूद करने लगी। राजा ने देखा तो सैनिकों को आदेश दियाNDA जाओ! इस
दुष्ट राक्षसीको पकड़ लो।
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