SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ TAVAIDYA क्रोध में फुकारते हुए नाग ने हाथी के कुंभस्थल पर डंक मारा। तीव्र जहर समूचे शरीर में फैल गया। जातिस्मरण ज्ञान से हाथी ने उड़ते नाग को पहचान लिया-'यही तो मेरा भाई कमठ है। मैंने पूर्वजन्म में इसका अहित किया था, इसलिए इसने मुझे डस लिया। अज्ञानी जीव है, द्वेष से प्रेरित होकर इसी प्रकार बैर से बैर बढ़ाते रहते हैं।' फिर सोचता है-"मुझे क्रोध नहीं करना है। क्रोध को क्षमा के जल से शांत करूँगा। वेदना को शांति से सहन करूँगा तो अगला जन्म सुधर जायेगा।' कई दिन तक भूखा-प्यासा हाथी दलदल में फँसा पड़ा रहा। ऊपर से सूरज की तपती धूप, जहर की तीव्र जलन, फिर भी शांति और समभाव के साथ नमोकार मंत्र जपते-जपते प्राण त्यागकर आठवें देवलोक में देवता बना। कुर्कुट नाग अपने जहरीले दंतों से सैकड़ों-हजारों प्राणियों के प्राण लेकर अंत में मरकर पाँचवें नरक में गया। क्षमा से एक तिर्यंच देव बना। क्रोध से एक मानव नाग बना और नरक में गया। क्षमावतार भगवान पाश्र्वनाथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrar 13
SR No.002856
Book TitleBhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamsuri, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy