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________________ मनि से प्रतिबोध पाकर यूथपति ने संकल्प लिया-"अब मैं पुनः अपने श्रावकधर्म का पालन करूँगा। किसी पर क्रोध नहीं करूँगा। किसी को कष्ट नहीं दूंगा।" उपद्रव शांत होने पर मुनिराज के साथ-साथ सार्थ भी आगे यात्रा पर चल पड़ा। सभी यात्री कह रहे थे-"आज तो मुनिराज के तपोबल से हम सबकी प्राण-रक्षा हुई है।" कुछ कह रहे थे-"आज हमने संतों का दिव्य प्रभाव प्रत्यक्ष देख लिया।" यूथपति अब जंगल में वापस आकर श्रावकधर्म के अनुसार अहिंसक जीवन जीने लगा। जंगल के सूखे पत्ते खाता और सूर्य ताप से तपा सरोवर का प्रासुक जल पीता। न रात को खाता, न ही किसी जीव को कष्ट देता। क्रोध और प्रतिशोध की दुर्भावना में जलता कमठ मरकर कुर्कुट जाति का महासर्प बना। उसके लम्बे-लम्बे पंख और जहरीले दाँत जैसे साक्षात् यमराज का अवतार था। कुर्कुट सर्प उड़ ता-उड़ता उसी जंगल में आ गया। ___एक दिन जंगल में घूमता वह यूथपति हाथी प्यास से व्याकुल हुआ एक सरोवर में पानी पीने उतरा। सरोवर में पानी कम था। दलदल भरा था। हाथी दलदल में फँस गया। ज्यों-ज्यों निकलने की चेष्टा करता त्यों-त्यों गहरा दलदल में फँसता चला गया। कुर्कुट साँप ने हाथी को फँसा देखा। देखते ही पूर्वजन्म के बैर संस्कार जाग गये। Jai 12 ucation International For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
SR No.002856
Book TitleBhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamsuri, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size11 MB
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