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सम्राट सम्प्रति सम्राट् के गुरु समझकर लोग उन वेशधारी सम्राट् सम्प्रति के गुप्तचर उन्हें अनार्य देशों के समाचार देते श्रमणों के पास आने लगे। श्रमणों ने उन्हें मुनि रहते थे। एक दिन सम्राट् ने आर्य मुहस्ती स्वामी से प्रार्थना कीकी आचार मर्यादा आदि समझाई।
गुरुदेव ! अब तो अनार्य आप लोग
देशों में भी लोग जिनधर्म का ऐसी वेशभूषा क्यों ।
पालन करने लगे हैं। आप पहनते हैं? हम लोग अहिंसा का पालन
कृपाकर मुनियों को भेजें। करते हैं, घर-परिवार से
अलग रहते हैं।
काय
आचार्यश्री ने कुछ विशिष्ट श्रमणों को पारस, ग्रीस आदि एक बार पर्युषण के दिन सम्राट् ने एक दृश्य देखा। सम्राट् को देशों में भेजा। वहाँ गये उपदेशक साधुओं ने कहा- अपने पूर्व जीवन की याद आ गईअब हम यहाँ की भाषा,
एक दिन मैं भी संस्कृति से परिचित हो गये हैं। (इसी प्रकार रोटी-रोटी कृपाकर हमें ही दीक्षा दे दें। हम यहीं| (करके दर-दर भटक रहकर धर्म का प्रचार करेंगे।
रहा था।
श्रमणों ने योग्य देखकर उपदेशकों को मुनि दीक्षा दे दी। इस प्रकार दूर-दूर देशों में जैनधर्म का प्रचार होने लगा। हजारों लोग जैन बन गये।
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