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सम्राट सम्प्रति
सम्राट् सम्प्रति पाटलीपुत्र में आज सबाद अशोक का विजयोत्सव मनाया जा पृष्ठा है।
विशाल राजसभा के बीच एक ऊँचे सिंहासन पर सम्राट् अशोक आसीन हैं। दोनों तरफ अमात्य, रामपुरोहित, सेनापति तथा अन्य सामन्तगण एवं हजारों नागरिक बैठे हैं। तभी सन्देशवाहक ने सोने के थाल में रखकर पत्र भेंट किया
अवन्ती से राजकुमार कुणाल ने पिताश्री के चरणों में प्रणाम सूचित किया है।
राजा ने लिपिकार को आशीर्वाद पत्र लिखने का आदेश दिया और विश्राम करने राजमहल में चले गये।
कुछ देर बाद लेखपाल पत्र तैयार करके ले आया। सम्राट् ने पत्र पढ़ा, उसके नीचे अपने हाथ से एक पंक्ति और लिखी
भोजन का समय हो गया था। सम्राट् पत्र वहीं छोड़कर भोजनगृह की ओर चल दिए। रानी तिष्यरक्षिता ने इधर-उधर देखा! कोई नहीं था। उसने एक सलाई ली, आँखों के काले अंजन को सलाई पर लगाया। और | महाराज के संदेश पर एक बिन्दु लगा दिया।
अधीयतां कुमारः (कुमार को (विद्याध्ययन कराओ)
हम भी कुमार के लिए अपने हाथ से आशीर्वाद पत्र लिखेंगे।
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फिर राजमुद्रा लगाकर पत्र वहीं रख दिया।
फिर पत्र वापस रखकर चुपचाप भोजन कक्ष की ओष्ट चल दी।
१. कुणाल सम्राट् अशोक की सबसे बड़ी रानी का ज्येष्ठ पुत्र था। मृत्यु के समय रानी को महाराज ने वचन दिया था - कुणाल ही मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी होगा। तिष्यरक्षिता
आदि अन्य रानियाँ कुणाल को मारना चाहती थीं। उसकी जीवनरक्षा के लिए महाराज ने पाटलीपुत्र से दूर अवन्ती में कुणाल को रखा ताकि उसे कोई हानि नहीं पहुँचा सके! inelibrary.org