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________________ सम्राट सम्प्रति भारतीय इतिहास में सम्राट अशोक का नाम और स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। विशेषकर बौद्धधर्म के इतिहास में जो महत्त्व अशोक का है लगभग वही महत्त्व जैनधर्म के इतिहास में अशोक पौत्र सम्प्रति का है । सम्पूर्ण भारत और भारत के बाहर विदेशों में जैनधर्म और संस्कृति का प्रसार करने में सम्राट सम्प्रति ने जो योगदान दिया है वह हजारों वर्ष बाद आज भी इतिहास का उज्ज्वल प्रेरक अध्याय बना हुआ है। जैनधर्म के प्राचीन ग्रंथों - चूर्णि (वि. ७वीं सदी) भाष्य, टीका आदि में अनेक स्थानों पर अशोक पुत्र कुणाल के अंधा होने की घटना तथा सम्प्रति के पूर्वजन्म का प्रसंग व जैनधर्म के प्रसार हेतु विदेशों में श्रावकों को भेजने की चर्चा उपलब्ध है, इससे उसकी ऐतिहासिकता मे किसी प्रकार का सन्देह नहीं किया जा सकता। किन्तु आश्चर्य है इस प्रतापी और धर्मात्मा वीर सम्राट के सम्बन्ध में भारतीय इतिहास लेखक चुप क्यों रहे ? सम्राट सम्प्रति का यह कथात्मक चरित्र कुणाल की अगाध पितृ-भक्ति, आचार्य सुहस्ति का आदर्श करुणा भाव, सम्प्रति की धर्म श्रद्धा, जिनभक्ति एवं गुरु भक्ति तथा जिनशासन प्रजा के हित में किये गये महत्वपूर्ण कार्य साथ ही वीरता, राजनीति कुशलता आदि अनेक गुण इस चरित्र में उभर रहे हैं। जो प्रेरक होने के साथ उसके उज्ज्वल चरित्र को भी दर्शाते हैं। यह कथा प्रसंग पं. काशीनाथ जैन द्वारा लिखित "सम्राट सम्प्रति" पुस्तक को आधार मानकर लिखा गया है । जिसमें अनेक ऐतिहासिक साक्ष्य भी हैं। आचार्यश्री विजय सुशील सूरीश्वर जी के उत्तराधिकारी आचार्यश्री विजय जिनोत्तम सूरीश्वर के ने इस पुस्तक का लेखन किया है। - महोपाध्याय विनय सागर सम्पादक : श्रीचन्द सुराना "सरस'' लेखक : आचार्य श्री विजय जिनोत्तम सूरि. प्रकाशन प्रबंधक : संजय सुराना प्रकाशक - श्रीचन्द सुराना 'सरस' चित्रांकन : श्यामल मित्र श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002. दूरभाष : 0562-351165 सचिव, प्राकृत भारती एकादमी, जयपुर 13- ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017. दूरभाष : 524828, 561876, 524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा 18/D, सुकेस लेन, कलकत्ता - 700001. दूरभाष : (242) 6369, 4958 फैक्स : (210) 4139
SR No.002844
Book TitleSamrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamsuri, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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