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________________ रूप का गर्व ध्ययन पूर्ण करके सनत्कुमार एक दिन बसन्त ऋतु के समय सनत्कुमार और उसका मित्र 1106762 में बैठने लगा। उसका अद्भुत महेन्द्र नगर के बाहर मकरंद उद्यान में गये। उधर से घोड़ों ([email protected]/न्दर्य देखकर लोग चर्चा करते- का एक व्यापारी गुजर रहा था। रामकुमार को वहाँ देखकर का एक अपने कुमार को देखकर ऐसा लगता है उद्यान में आ गया। महेन्द्र ने उसका परिचय दियाजैसे स्वर्ग का इन्द्र या कामदेव ही धरती पर आ गया है। कितना तेजस्वी रूप है इसका। राजकुमार ! यह अपने सा ही नगर के प्रसिद्धहॉ , राजकुमार ! मैं अश्व-व्यापारी हैं। कौशाम्बी से उत्तम जाति के अश्व खरीदकर लाया हूँ। S LING AVAN रामकुमार को घुड़सवारी का बहुत शौक था। वह सनत्कुमार ने घोड़े को एड़ लगाई कि घोड़ा जैसे हवा में | अश्व-पारखी भी था। उसने एक चपल श्वेत उड़ने लगा। अश्व को छाँटा और उस पर सवार हो गया। महेन्द्र ! तुम यहीं रुको। मैं जरा घुड़सवारी का आनन्द लेकर आता हूँ। A9200 देखते ही देखते वह सबकी आँखों से ओझल हो गया। Jan Education International For Private 3ersonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002837
Book TitleRup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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