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________________ सिद्धचक्र का चमत्कार मैना और श्रीपाल भी तपस्वी मुनि के पास पहुँचे और अपनी व्यथा बताई। मुनि ने उन्हें नवपद की आराधना करने का उपदेश दिया। नवपद की आराधना विधि सीखकर मैना श्रीपाल को लेकर वापस अपने निवास उद्यान बाहर खण्डहर में आ गई। हरकत Cu स्वामी, ये तपस्वी मुनिराज बड़े ही ज्ञानी लगते हैं। हम इनके बताये अनुसार आयम्बिल पूर्वक नवपद की आराधना करेंगे तो अवश्य ही हमारे कष्ट दूर हो जायेंगे.... आश्विन शुक्ला सप्तमी से दोनों ने नवपद की आराधना प्रारम्भ कर दी। काँसे की थाली में रोली अक्षत से सिद्धचक्र महामंत्र की आकृति माँड़ी। एक श्रावक ने उनके आयम्बिल की व्यवस्था भी कर दी। • नवपद एवं सिद्धचक्र की आराधना विधि पुस्तक के अन्त में देखें। 20 For Private & Personal Use Only मो Categ उपसे स्वाहा rabar अजयम रा Plura 9322 www.jainelibrary.or
SR No.002812
Book TitleSiddhachakra ka Chamatkar Diwakar Chitrakatha 013
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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