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सिद्भचक्र का चमत्कार राजा ने कलाचार्य का सन्मान कर दोनों कन्याओं || बड़ी कन्या सुरसुन्दरी बोलीकी परीक्षा ली। परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर राजा का मन बहुत सन्तुष्ट हुआ। राजा ने कहा
पिताजी, संसार में दो ही जीवन
दाता हैं, एक मेघ, दूसरा राजा। पुत्रियों, हम आज बहुत प्रसन्न हैं।
इसलिए आपकी कृपा से मैं सदा तुम जो चाहो, सो मांग लो। हम
सुखी रहूँ बस यही चाहती हूँ। सब कुछ तुम्हें दे सकते हैं।
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कन्या के उत्तर से सभासदों ने तालियाँ बजाई
वाह ! वाह ! कितनी बुद्धिमान
और समझदार है यह!
| मैनासुन्दरी को मौन देखकर राजा ने कहा
बेटी मैना ! तू मौन क्यों है? तू भी कुछ मांग...? जो मांगोगी सोदूँगा...
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मालय
राजा का हृदय भी सुरसुन्दरी के उत्तर से बाग-बाग हो गया।
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