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________________ मैना ने गंभीर होकर कहा पिताजी, मुझे क्षमा करें। मैं मुँह मीठी बातें करके आपको धोखे में नहीं रखना चाहती! सच यह है कि सुख-दुःख तो मनुष्य को अपने कर्मानुसार मिलते हैं। मांगने की दीनता और देने का अहंकार दोनों ही व्यर्थ हैं मैना ने हाथ जोड़कर कहा Poooo पिताजी ! आप क्रोध न करें। मैंने तो धर्मशास्त्र में यही पढ़ा है, और इसी पर मेरा विश्वास है। सुख-दुःख की कर्ता आत्मा स्वयं ही है, तथा वह स्वयं ही इसका फल भोगती है।" गल Jin Education International सिद्ध चक्र का चमत्कार मैना की बातें सुनकर समूची सभा स्तब्ध रह गई। राजा की आँखों से अंगारे बरसने लगे। DODOM CL.C मैना ! तुम्हें होश है, क्या बोल रही हो ? राजा ही धरती का ईश्वर होता है... तुम ऐसी मूर्खता भरी बातें करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मत मारो! LERY RECE राजा प्रजापाल क्रोध में तमतमा उठे। सभा में भी घुसर- फुसर होने लगी। बात बढ़ती देखकर चतुर मंत्री ने राजा से निवेदन किया महाराज ! अभी आपके उद्यान भ्रमण का समय हो गया। इन बातों को कल पर छोड़ दीजिए। 10 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002812
Book TitleSiddhachakra ka Chamatkar Diwakar Chitrakatha 013
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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