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स्वर्ग का आयुष्य पूर्ण होने पर नयसार के जीव ने ऋषभदेव के पुत्र, भरतक्षेत्र के चक्रवर्ती सम्राट, महाराज भरत के घर जन्म लिया।
इस बालक के शरीर से तेज किरणें निकल रही हैं इसलिये इसका नाम मरीचि रखना चाहिए।
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करुणानिधान भगवान महावीर
• मरीचि == किरणें
भगवान ऋषभदेव का प्रवचन सुनकर मरीचि को
वैराग्य उत्पन्न हो गया।
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भगवन् ! आपका उपदेश सुनकर मुझे वैराग्य हो गया। मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ।
जहा सुहं देवाणुप्पिया !
| मरीचि बड़ा हुआ। एक दिन भरत चक्रवर्ती के साथ भगवान ऋषभदेव के समवसरण में प्रवचन सुनने के लिए गया।
उसी का जीवन सफल है, जो तप-संयम की आराधना करते हुए समाधि भाव में रमण करें।
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भगवान ऋषभदेव ने कहा
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जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसा करो। #
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मरीचि ने दीक्षा ग्रहण कर ली और तपस्या करने लगा।
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