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________________ करुणानिधान भगवान महावीर नयसार हाथ जोड़कर मुनियों की वाणी सुनने लगा महात्मन् ! मैं आपके बताये रास्ते पर चलने का अवश्य प्रयत्न करूंगा। भद्र ! इस संसार रूपी अटवी को पार करने आज मेरा जीवन धन्य हो गया। के लिए देव गुरु और धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा रखो। श्रद्धा और सदाचार यही कल्याण के दो मार्ग हैं। का N otional R Mam2) HAMITRA 2. Bonaril HIEDO SUS गुरु की वाणी सुनकर नयसार को भवचक्र में प्रथम बार शुद्ध श्रद्धा रूप सम्यक्दर्शन का स्पर्श प्राप्त हुआ। । इतना कहकर मुनि आगे नगर की तरफ चले गये। नयसार वापस लौट आया। जीवन के अन्तिम समय तक नयसार दान, सेवा, मृत्यु-पश्चात् नयसार का जीव और सच्चाई के मार्ग पर चलता रहा। नमस्कार | प्रथम स्वर्ग में देव बना। महामंत्र का स्मरण करते हुए उसने शान्तिपूर्वक मृत्यु प्राप्त की। जब नासाथ MORE AVAVA JAAN NYOORDAR 5 Jain Education International For Private & Personal use only
SR No.002809
Book TitleBhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size14 MB
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