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________________ करुणानिधान भगवान महावीर एकबार मरीचि मुनि विहार कर रहे थे। ग्रीष्म ऋतु का समय था। तेज धूप और लम्बी यात्रा के कारण भूख, प्यास से बेहाल होकर सोचने लगे ओह ! कितना कठिन है श्रमण जीवन। इस तपती भूमि पर गर्मी में नंगे पाँव नहीं चला जा रहा है।ओह ! भूख भी लगी है। प्यास से कंठ सूख रहा है। परन्तु श्रमण जीवन की मर्यादा के अनुसार मैं ये फल भी नहीं खा सकता! झरनों का मल भी नहीं पी सकता। क्या करूं? AC मरीचि ने अपनी ही कल्पना से वेष में सुविधानुसार परिवर्तन कर लिया। गर्मी से बचने के लिये सिर पर छतरी रखने लगे। पैरों में खड़ाऊँ पहनने लगे। मुनि-जीवन के कठोर व्रतों से मरीचि का मन घबरा गया। तभी उन्हें एक अनौखा उपाय सूझामैं इन नियमों में कुछ परिवर्तन कर लेता हूँ, जिससे मुझे इतने शारीरिक कष्ट भी नहीं उठाने पड़ेंगे और साधना के मार्ग पर भी चल सकूँगा। ( 3322 (6332 MENU RSTER Cine वे भगवान ऋषभदेव के साथ ही विहार करते और उनके समवसरण के द्वार पर त्रिदण्ड लेकर खड़े रहकर लोगों को धर्म प्रेरणा देते।। www.alinelibrary.org
SR No.002809
Book TitleBhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size14 MB
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