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चिन्तामणि पार्श्वनाथ नाग जोड़े को जलते देख पार्श्व कुमार का हृदय करूणा से द्रवित हो उठा, वह कमठ से बोले
तपस्वी! यह कैसा अज्ञान तप है? जिन्दा जीवों को आग में जलाकर आप यज्ञ के नाम पर घोर हिंसा कर रहे हैं?
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राजकुमार! तुम अभी बालक हो, यज्ञ और धर्म का रहस्य तुम क्या जानो? तुम्हें कैसे
पता कि इस यज्ञकुण्ड में कोई जीव जल रहा है?
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यह सुनकर कुमार ने अपने सेवक को अग्निकुण्ड में से जलता हुआ लक्कड़ निकाल कर चीरने का आदेश दिया। लकड़ी को चीरते ही उसमें से जलता हुआ एक नाग का जोड़ा बाहर निकला। वह अध जली मरणासन्न स्थिति में पीड़ा से तड़फ रहे थे। पार्श्व कुमार ने सोचा, इस मरते हुये नाग युगल को सद्गति मिलनी चाहिये इसलिये वे पास में जाकर उन्हें नवकार मन्त्र सुनाने लगे। ।
हे नागराज! आप शांतिपूर्वक पीड़ा सहन करते हुये नवकार मन्त्र का ध्यान
कीजिये।
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