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चिन्तामणि पार्श्वनाथ दूत की बातें सुनकर पार्श्व कुमार राजा अश्वसेन से बोले
पिताश्री, आप मुझे आज्ञा दीजिये। मैं यवन राज को सबक
सिखा कर आता हूँ।
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जाओ पुत्र विजयी होकर वापस आओ।
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पार्श्व कुमार अपनी सेना के साथ यवन राज से युद्ध करने चल पड़े। जब यह खबर देवराज इन्द्र के पास पहुंची तो उन्होंने अपना दिव्य अस्त्रों से भरा रथ पार्श्व कुमार की सेवा में भेजा। पार्श्व कुमार उस दिव्य रथ में बैठ गये। स्थ भूमि से ऊपर आकाश में सेना के आगे-आगे चलने लगा।
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कुश स्थल के पास पहुंचकर पार्श्वकुमार ने नगर के बाहर उद्यान में अपनी सेना सहित पड़ाव डाला
को सन्देशलेकर यवन राम के पास भेजा।। AMIT
हे यवनराज! आप या तो कुक्षस्थल नगर से घेरा हटा| लें। अन्यथा युद्ध के लिये ANY
तैयार हो जायें।
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