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________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथ इस तरह भगवान पार्श्वनाथ का जीव अपनी नौ जन्मों की यात्रा में पुण्य कर्मों का संचय करता हुआ | दसवें जन्म में वाराणसी के राजा अश्वसोन की पटानी महारानी वामादेवी के गर्भ में अवतरित हुआ। महारानी ने उस रात चौदह विलक्षण शुभ स्वप्न. देखे। स्वप्न देखकर वामादेवी जाग उठी। राजा अश्वसेन को जगाकर वे अपने अलौकिक स्वप्नों के बारे में बता ही रही थी, तभी उन्होंने अपने पति की| बगल से एक सर्प को जाते हुए देखा/BTE स्वामी ! वह देखिये एक सर्प आपके पार्श्व# से जा रहा है। सहाय hua आश्चर्य! इतनी अँधेरी रात में आपको कैसे दीख रहा है? अगले दिन राजा अश्वसेन ने इन स्वप्नों और घटना के बारे में ज्योतिषियों से विचार-विमर्श किया। महाराज! अवश्य ही महारानी के गर्भ में किसी अलौकिक आत्मा ने प्रवेश किया है। (UK INE CeDees सरल GurugPROC03 # पार्श्व = पास से, निकट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002804
Book TitleChintamani Parshwanath Diwakar Chitrakatha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children Story, & Literature
File Size21 MB
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