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चिंतामणि पार्श्वनाथ एकबार बरसात के मौसम में संध्या हो जाने पर दासी ने जीवन की सार्थकता पर सोचते-सोचते सुवर्णबाहु को | दीपक मलाया। कुछ देर बाद दीपक पर पतंगे आ-आकर विषय-भोगों व राज वैभव आदि से विरक्ति हो गई। गिरने लगे/सुवर्णबाहु यह दृश्य देखकर सोचने लगे- अपने पुत्र को राज्य सौंपकर वे श्रमण बन गये 3 संसार के सुख-भोगों की चमक इस दीपक के लौ की एकान्त वन में आत्म-ध्यान में लीन रहने लगे। तरह है। जिसे पाने के लिए अज्ञानी जीव पतंगों की भांति अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं। क्या मेरा जीवन भी। इन मढ पतंगों की तरह है ? व्यर्थ जायेगा?
एक दिन क्षीरगिरि वन में मुनि ध्यान लगाकर खड़े थे। एक भूखे खूखार सिंह ने मुनि पर झपट्टा मारकर आक्रमण कर दिया।
सिद्धे सरणं.... धम्मसरणं
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2NDIA अत्यन्त शान्ति और समभाव के साथ प्राण त्याग दिये।
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D # यह खूखार सिंह कमठ का जीव था। Jain Education International
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