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________________ 54 Jain Education International THE RISTASAMUCCAYA अनिमित्तं अविलंबी चक्खुस्सावो य लंबगो सासो । जइ ता कमेण दस सत्त वासरंते धुवं मरणं ॥ २२२ ॥ x X X जस्संगुली सहसा फुडंति आयट्टणं विणा चेव । सो वि अवस्सं काही देवी देहंतरं तरसा ॥ २२४ ॥ X X X घरसिजंता वि दर्द निस्सदा चेव जस्स कर-चरणा । जस्स निसि दियसि मोहो रेयं च सरंतमइरित्तं ॥ २२७ ॥ छीयण-कारण-मुत्तण किरियासु (सुं) कारणं विणा चेव । जस्स य अपुब्वसदो जायति यमकवलिओ सो वि ॥ २२८ ॥ X X X अनिमित्तं चिय सत्ती सीलं चाओ सई बलं बुद्धी । छक्क मिणं विणियत्तइ छम्मासासन्नमरणं च ॥ २३५ ॥ ॥ अरिट्ठदारं ॥ X X X तो पिट्ठीए सूरं काउं सूरोदए चिय सुनिउणं । स- पराउनिच्छकए नियछायं [णं] पलोएजा ॥ २४४ ॥ जइ संपुर्ण पासति भवरसं ता नत्थि मचुभयं । अह नियइ कन्नन्नं ता जीवइ (वेई ) [य] वरसतिगं ॥ २४५ ॥ करविरहे दसवरिसे अंगुलिविरहे य अट्ठ वरिसाणि । धाभावे सत्त उपासाण असणे तिनि ॥ २४६ ॥ नासाचिरहे वरिसं साभावे य जियइ तप्पणगं । सिरविकलछायदंसणे नरो जियइ छम्मासं ॥ २४७ ॥ गीवावर हे मासं चिबुगाभावे य जियह छम्मासं । एक्कारस चेव दिणणि दिट्ठिविरहे जियइ पुरिसो ॥ २४८ ॥ सच्छिड्डे पुण हियए दीसंते सत्त वासरे जियइ । अह छायदुर्ग पासति जमपासे ता पडइ खिप्पं ॥ २४९ ॥ ॥ जंतप्पओगदारं ॥ X x X अह अप्पणित अप्पणी कए परकए य परछायं । सम्मं तक्कयपूओ परमुवउत्तो पलोएजा ॥ २५७ ॥ जइ तं संपुत्रं चिय पासति ता नत्थि मरणमावरिसं । कम जंघ - जाणुविर ति-दु-एक्कगवरिसेहिं मरइ धुवं ॥ २५८ ॥ दसमासंतंमि तदूरुसंखए कडिखए नव-ट्ठहिं च मरइ । तदुदर अभावे मासेहिं पंचहिं छहिं वा ... ।। २५९ ॥ गीवाभावे चउ-ति-दु-इक्कगसंखेहिं मरइ मासेहिं । पक्खं कक्खाण खए बाहुखए दस दिणे जियइ ॥ २६० ॥ खंधखए अट्ठदिणा चउमासं जियइ हिययछिड्डत्ते । पहरदुगं चिय जीवति छायाऍ सिरोविहीणाए ॥ २६१ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002800
Book TitleRisht Samucchaya
Original Sutra AuthorDurgadevacharya
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1945
Total Pages290
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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