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________________ ६९४ प्रतुष्टुवुर्देवगणाश्च सर्वे V. 54.45d प्रतोदः सारंथेस्तदा VI. 78.17b प्रतोदाभीषुहस्तोऽयम् III. 64.50a प्रतोदेन हयोत्तमः II. I4.23b प्रतोदो न्यपतद्धस्तात् VI. 57.39a प्रतोलीवरशोभिताः II. 80,18d प्रत्यक्स्रोतस्तरङ्गिणीम् II. 71.2b प्रत्यक्स्रोतोवहाश्चैव IV. 42.8c प्रत्यक्षं तव सत्येन II. 34.48c ,, ,, सौमित्रे VII. 45.7c प्रत्यक्षतस्तां पुनरेव दृष्ट्वा V. 55.35c प्रत्यक्षं ते यथा शापः VII. 54.14c प्रत्यक्षं देवि देवतम् II. 62.8d , प्रवदामि ते IV. 54.10b ,, मम मैथिलि II. II9.IIb प्रत्यक्षमिव दर्शितम् I. 4.18b प्रत्यक्षमुपलक्षितम् IV. 46.24d प्रत्यक्षमेव भवताम् V. 58.8a प्रत्यक्षं यत्तदातिष्ठ II I08.17c ,, यद्यहं तस्य III. 56.5a ,, लौकिकं चापि VI. 18.9c ,, वानरस्यास्य VI. II6.12a , सप्त ते ताला IV. 14.13c प्रत्यक्षा सा श्रुतिः कृता II. I06.13d प्रत्यक्षस्तेऽविशङ्कया II. 100.52b प्रत्यक्षे सति दैवते II. 18.16d प्रत्यगात्ममिमं धर्मम् II. I09.Iga प्रत्यगारमिवायान्ती II. 40.43a प्रत्यगृह्णत वासार्थम् IV. 27.4c प्रत्यगृह्णन्दृढव्रताः III. I.12d प्रत्यगृह्णन्निमीलितः VI. 58.41d प्रत्यगृह्णामहं ततः V. 58.41b प्रत्यदृश्यत कोटीभ्याम् IV. 39.34a , हेमाङ्गः III. 49.19c प्रत्यनन्दन्नृपा नृपम् II. 2 17b प्रत्यनन्दन्प्रकृतयः II.81.15c प्रत्यबुध्यत राघव VII. 37.10d , वानरः IV. 31.41b , वीर्यवान् VI. 49.3b प्रत्यभात्कर्म दुष्कृतम् II. 62.4b प्रत्यभाषत काकुत्स्थम् VI. 18.35c , काकुत्स्थः IV. 5.25a , दुर्धर्षः VI. 18. IC , दुर्मनाः II. 39.2d , मां देवी V. 58.95a प्रत्यभिज्ञातुमर्हसि IV. 6.12d प्रत्ययं गच्छ मे स्वेन VI. II6.6c , तव दास्यति VII. 06.22d प्रत्ययं दातुकामायाः VII. 95.5c , दास्यते सीता VII. 96.16c , समरे श्लाध्यम् IV. II.83c प्रत्ययश्च पुरा वृत्तः VII. 97.3a ,, विनाशित: VI. 104.5d प्रत्ययस्तु मम ब्रह्मन् VII. 97.2c प्रत्ययार्थ ततः सीता VII. 45.7a ,, तवानीतम् V. 36.3a ,, महातेजाः IV. 12. IC प्रत्ययेन महाबल: V. 58.129d प्रत्ययोत्पादनं सख्यम् I. 3.23c प्रत्ययो मे नरश्रेष्ठ VII. 97.9c प्रत्यर्चयति सागरः V. I.I06b प्रत्यर्चयन्हरिश्रेष्ठम् V. 57.33c प्रत्यविध्यद्धयांस्तस्य VI. 90.30a प्रत्यवेक्षस्व पार्थिव VI. 92.61d , मामिति II. 32.35b प्रत्यवेक्ष्य तु ताम्राक्षः VI. 92.33a प्रत्य वैक्षत राघवम् II. 39.2b प्रत्यहं मम भोजनम् V. 33.20b प्रत्याख्याता नृपतयः I. 66.20a प्रत्याख्यातुं त्वमर्हसि III. 48.17d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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