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________________ तस्य धर्षणभीरव: VII. 18.4d नन्दन्ति मित्राणि II. 3.45c नादेन राघव VII. 12.30d नानद्यमानस्य V. 57.170 VI. 61.16a ار ܝܕ " "" " " " 33 "1 " " 39 "3 " 33 "" " 33 رد " " 29 ,, पाण्डुरमाजहु: IV. 26.23c पाद प्रहीष्यामि II. 72.330 संगृह्य III. 5.26a पापमभिप्रायम् VII. 67. ga पापस्य रक्षसः IV. 1. 118b " " " .. "" 33 " " "9 74.43a " नानुभवेदर्थम् VI. 128.70 नास्ति व्यतिक्रमः II. 12.46d निर्धावमानस्य VI. 55.9c निर्याणघोषेण VI. 57.33a निष्कर्षतः शक्तिम् VI. 100.44a निष्कृष्यमाणस्य IV. 23.18c निष्कममाणस्य II. 16.34a निःश्वासवातेन VI. 60.41a निष्पततस्तूर्णम् VI. 65.47a नैऋतराजस्य V. 23. 18a VII. 14.7C " 93 नैवास्थि न शिरः VII. 27.50a पञ्चायसास्तीक्ष्णाः V. 46.220 पत्नी महाभागा VII. 61.16a पर्वणि तं यज्ञम् I. 39.70 ३० " पुत्रद्वयं ब्रह्मन् VII. 78.4a राज्ञः I. 71.1-a पुत्रः प्रियो ज्येष्ठः V. 31.5a शरण्यस्य IV. 4. 19c " पुत्रो भविष्यति I. 9.4b " " " " 23 महातेजाः I. 47.17a IV. 62.4c " महानासीत् I. 42.9c " Jain Education International VII. 79.5C ४०९ तस्य पुत्रो मिथिर्नाम I. 71.4a त्रिशालाक्षि V. 23.8a पुत्रोंशुमान्नाम I. 38.220 पेतुर्नगा भूमौ VI. 74.38a पैतामहं कुलम् VII. 12.21b प्रकृत्या रक्ते च VI. 92.20a प्रयागे रामस्य II. 54.34a 33 33 "" AAAA " " " " 23 33 35 39 " 53 "" 23 39 33 39 "" " 33 رو در 39 در 27 प्रविष्टस्य बिलम् IV. 9.15a प्राणान्तिको दण्ड: IV. 29.32c प्रादुरभूच्चिन्ता V. II.40a बाणगणानेव VI. 58.41a बाणपथं प्राप्य VI. 76.62a बाणान्तराद्रक्तम् III. 30.21a बाणा: पतन्तस्ते VII. 19.21a बाणैव चिच्छेद VI. 100.16a बाणै: सुविध्वस्तम् VI. 88.54 बाहुप्रमुक्तेन III. 71. IOC बाहूरुवेगं च V. 57.24a बाहूरुवेगेन VII. 34.25c बुद्धिं च विज्ञाय VI. 125.18a बुद्धिरियं जाता I. 2.41a " बुद्धिः समुत्पन्ना I. 57. IIC VI. 101.33a VII. 55.7a 70.16a 84.ga भार्या जनस्थानात् IV. 52.5c IV. 57.9a 23 :3 29 ور "" 23 For Private & Personal Use Only 23 II. 118.38a 33 33 22 23 जनस्थाने V. 51.7a "" ,, दुरात्मन: V. 58.76d भार्याद्वयं सौम्य VII. 58.70 भार्यापहारणे III. 31.41b भार्या बभूवेष्टा VII. 35.20a भार्यां हरिष्यति IV. 62.6b www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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