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________________ ३५८ तत्तथैव न संशयः IV. 18.45d तत्तदुद्दिश्य दैवतम् I. 11.30b तत्तद्ब्रूहि नर श्रेष्ठ IV. 30.83c तत्तस्य भाषितं श्रुत्वा VII. (55.9a ,, रक्तं रक्तन V. 44.9a ,, वाक्यं निपुणं निशम्य IV. 3.39a , ,, ब्रुवतो , VI. 60.8ra ,, ,, ,, ,, 71.46a , सदृशं भवेत् V. 37.64d " , , , 39.29d " , , , 39.30d " , ,, ,, 5612d ,, ,, ,, 6.Id तत्तिष्ठद्वसुधां रक्षः VI. 79.31a तत्तु पक्कं समाज्ञाय II. 56.27a ,, भाग्यविपर्यासात् VI. III.70a ,, माल्यवतो वाक्यम् VI. 36.ra ,, मिथ्या प्रलप्तं माम् VI. 49.22a. ,, मोहान्न बुद्धयसे VI. III.28d तत्तुल्याधिगतप्रभाववन्तौ VII. 55.2Id तत्तु शीघ्रमतिक्रम्य IV. 43.20a ,, श्रुत्वा तथा वाक्यम् IV. 56.18a तत्तु श्रुत्वा दशग्रीवः VI. 63.22a ,, सत्यं वचः कार्यम् VII. 27.8c तत्तृतीयं हनुमतः V. I.16ra तत्तेजो यत्र वारुणम् VII. 57.6d तत्ते भवतु मङ्गलम् II. 25.32d " " " 25.33d " " 25.34d ,, , , 25.35d ,, मनीषितं वाक्यम् VII. I03.16a ,, व्यपनयिष्यामि II. I0.39e ततो मरुत्तो नृपतिः VII. 18.8a तत्र कश्चिन्मया दृष्ट: IV. 59 14a ,, कस्ते वने लोभः IV. I7.31b | तत्र कान्तार पादपान् III. II.75d ,, कालेन केनचित VII. ()..fol) ,, 13.1b ,, किं प्रतिवक्ष्यसि II. I.2.40d ,, कुजरयूथानि II. 5-1-4IC ,, कृष्णाजिनधरम् III. 35.38a ,, केचिद्रुतं जग्मुः VI. 4 63c ,, कैलाससंकाशम् IV. 40.40c ,, क्रौञ्चाश्च हंसाश्च IV. 50.9c ,, क्लृप्तमिदं राज्ञा VI. 64.Ion ,, गत्वा च सा तस्थौ VII. 9.14c ., गवाथ भूमिपम् II. 76.17b ,, गत्वाऽऽश्रमपदम् III. I3.La ,, गन्तुं कृतक्षणाः V. 64.211) ,, गन्धर्वपतयः IV. 41.42c,, गात्रं हतं तस्य I. 2 .13a ,, गेयं विशेषत: VII. 93.6d ,, चक्रं सहस्रारम् IV. 42.27c , चन्द्र प्रतीकाशम् IV. 40 51a ,, चाग्निपरीतानि VI. 75 210 ,, च निः समभवत् V. 43.18c तत्र चानीयमाने तु I. I0.20a ,, चान्तरोद्देशाः IV. 4I.39a ,, चापि मया देव II. II.Iga ,, चापि महात्मानः IV. 48.15c ,, चापि महीयते III. 6.13d ,, चार्धप्रदीप्तानाम् VI. 75.53a ,, चित्रगवाक्षाणि ,, 75.19c ,, चैकां निशामुष्य VII. 25.5IC , , , ,, 46.30c ,, चैका महाभागा I. 70.32c ,, ,, ,, II. IIO.I8c ,, जग्मतुरव्यग्री III. 75.15a ,, जग्मुस्तया सार्धम् III. 19.26c ,, जातं बहु द्रव्यम् II. I0.38a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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