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तत्कोपज तेजः IV. 40.48c
तत्र च दृश्यन्ते III. II.50a ,, ,, च विन्यरतैः V. II.20c
,, च संनद्धा: VI. 33.23a " पुनः पुनः VI. 72.12d
यशस्विनः II. 54.3d विचिन्वन्त: IV, 50.37c ,, विपर्यस्तम् VII. 28.I7c ,, समावृतम् IV. 33.20d
,, सहस्रशः VI. 94.23b ,, ,, सहास्माभिः IV. 49.3a
,,, स्म दृश्यन्ते III. 25.42c ., , स्म नीयते VII. 31.42d ,, ,, हि दृश्यं ते II. 88.1-40 ,, तत्राप्युपस्थितः VI. 75.43b ,, तत्रावतिष्ठन्तौ III. 69.7c ,, तत्रोजटस्थानम् ,, 60.4c ,, तप्स्यामहे तपः I, 62.2d ,, तस्थुः समन्ततः II. 93.26b ,, तस्थौ समाहितः I. 15.18b , तां च शुभाचाराम् VII. 52.9a ,, तापसमासीनम् III. 7.5a ,, तामसितापानीम् III. 54.13c ,, तां पतितां भूमौ II. I0.22c ,, ,, प्रवणामेव II. 4.30a ,, ,, रजनीमुष्य VII. 52.1a ., ताराधिपस्याभा VI. 18.12c ,, ते कीर्तयिष्यामि VI. I8.12c ,, ,, क्षन्तुमर्हसि II. 23.10d
,, गुणवन्तश्च II. HI.I3a ,, जननी क्रुद्धा II. 35.21a ,, न्यवसन्सुखम् I. I.32b ,, ,, VII. I0.495
,, परमौषधी VI. 50.31d ,, ,, वचनं शूर: VII. 24.39c
तत्र तैः संप्रपीडितः VI. 20.32b ,, तो कीर्तिसंपन्नौ V. 35.32c ,, ,, वसतो ध्रुवम् II. 92.12d ,, त्रयोदशे वर्षे III. 47.5a ,, त्रिपथगां दिव्याम् II. 50.12a ,, त्रेतायुगे युगे VII. 74.12f , त्वं द्रष्टुमर्हसि I.31.7d ,, ,, मम नैवासि II. 61.25a , ,, मानुषो भूत्वा I. 15.2IC ,, ,, वस भद्रं ते VII. 3.27a ,, ,, ,, हे सीते III. 48.13a ,, ,, व्यापृतो भव II. 23.2gb ,, त्वां च्यावयच्छत्रुः II. II,I8c ,, दिव्योपमं मुख्यम् V. I0.1a ,, दुःखमिदं सर्वम् II. II5.2c ,, देवान्पितृन्विप्रान् VII. 37.14a ,, देवाः सगन्धर्वाः VII. II.42c ,, देवो मया दृष्ट: VII. I3.22a ,, ,, महेश्वरः VII. 13.26b ,, देव्यां निपातितम् VII. 13.22d ,, देशान्विचिन्वन्ति IV. 47.3c ,, दोषं प्रपश्यामि VI. 17.53c ,, दृष्टिं समादधत् II. 93.26d ,, दृष्ट्वा विभीषणम् VI. 87.Iod ,, दृष्ट्वैव तां हर्षात् IV. I.2a , द्रक्ष्यथ कावेरीम् IV. 41.15a ,, द्रक्ष्यसि काकुत्स्थ I. 31.IIग ,, धैर्याच्च शूरस्तु III. 69.37a ,, नामुदितः कश्चित् IV. 43.52a , निद्रां समाविष्टः VII. I3.7a ,, नेत्रमनःकान्तः IV. 41.34c ,, नो नास्ति जीवितम् IV. 57.10d ,, न्यस्तानि मांसानि V. II IC ,, पञ्चजनं हत्वा IV. 42.28a ,, पत्नीवियोगं त्वम् VII. 7I. I5a
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