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________________ ३५७ ततो हि दुर्मना रामः VI. II7.Ja | तत्कर्म समपूजयन् VI. 93.35d ,, ,, देवा ऋषिपन्नगाश्च VII. 69.39a तत्काननं विगाह्याशु VII. 88.6a ,, ,, न: प्रियतरम् II. I7.Ila तत्कार्मुकैराभरणै रथैव III. 24.36a मे भयं देव 1.64.4a तत्कार्यं कार्यतत्त्वज्ञे IV. 33.49c ,, ,, यजमानस्य ,, 43.340 तत्कार्यमनुगम्यान्तः III. 35.2a ,, ,, ववृधे गन्तुम् V. I.9c तत्कार्यमवसादितम् V. 55.9b ,, ,, हरिशार्दूल ,, 39.22a तत्कालसदृशं वचः II. 2.Id ,, हृष्टो भरद्वाजः II. I31.7a तत्कालसदृशीं मतिम् V. 53 Tod ,, हेमप्रतिष्ठाने IV. 26.31a तत्काल हितमात्मनः VI. 24.8d ,, हेममयं दिव्यम् IV. 41.18c तत्किं तव यथा वीर VII. 23.51a ,, हेममयं पुरम् VII. I2 8d तत्किमेवं परिनिय VII. 20.15a ,, हैमवती ज्येष्ठा I. 43.4a तत्कुम्भकर्णस्य भुजप्रणुन्नम् VI. 67.62a ततोऽहं रूपसादृश्यान् IV. 12.32a तत्कुरुष्व वचो मम VII. II.Igb ,, वाचमौषम् V. 58.16 Ic ,, समाहितः IV. 31.51b ,, वादिना तेन IV. 46.12a तत्कुलीनो विशेषत: IV. 55.7d ,, विजितेन्द्रियः I. 63.21b तत्कृते च वयं सर्वे VII.9.ga विपुलं रूपम् V. 58.43a तत्कृतं रावणं हत्वा VI. II5.13c व्यथितेन्द्रियः VII. 78 IId तत्कृत्वा दुष्करं कर्म VI. I26.14a शरमुद्धृत्य II. 63.23a तत्कौबेर मिहेव तु II. 9I.Igd सहसा क्षिप्तः V. I. II8c तत्क्षणादेव निष्क्रम्य II. 4.29c , साधुसाधिति ,, 58.34c ,, संत्रासात् III. 44.IIC ,, सुचिरं कालम् ,, 58.2IC तत्क्षणे तु महाघोरम् III. 26.34a ,, सुमहद्रूपम् , 58.156a तत्क्षम नेह नः स्थातुम् V.64.14c , हिमवत्पार्श्व I. 34.10a तत्क्षमस्व सखे मम IV. 36.20d ततो ह्यभ्युच्छ्रयन्पोरः VI. 128.42a तरक्षमो न विरोधस्ते IV. 15.2IC ततौ विभिन्नसङ्गिी VI. 45.15a तत्क्षिप्रं क्षिप्रहस्तेन VI. I07.55c तत्करिष्यामहे वयम् I. 69.15b तरक्षार राजपुत्राय II. 52.68c ,, ,, VI. 82.22b तत्तत्प्रयच्छ वैदेह्याः II. 55.28c तत्करिष्यामि ते हितम् VII. 2435d तत्तथा कर्तुमर्हसि VI. II4.12d तत्करिष्याम्यसंशयम् VI. 67.74b ,, क्रियतां राजन् I. 39.IIa तत्करिष्याम्यहं वीर VI. I04.23c तत्तथानुष्ठितं वीर VI. 85.5c तत्कर्तुमिच्छामि तव प्रसादात् VI. I09.23d तत्तथा हि करिष्यावः IV. 3.38c तत्कर्म च न बुद्धवान् III. 54.4b , ह्यभवच्चाद्य III. 44.23c ,, रामस्य महारथस्य III. 28.33a , ह्यस्य कार्यस्य IV. 65.32a , वालिपुत्रस्य VI. 44.29a तत्तथेत्यब्रवीद्राम: IV: 8.roa. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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