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________________ ततः शोणितदिग्धाङ्गो VI. 50.37a ,, शंसत मे लघु VII. 95.5d ततश्च कर्ता ह्यसि नात्र संशयः VII 95.5d ततश्चकाणि निष्पेतुः VI. I00.7a ततश्चक्रुः प्रदक्षिणम् VI. 29.22d ततश्रकुर्महात्मानः VI. 60.3ra ततश्चञ्चूर्य रम्येषु IV. 30.14a ततश्चण्डोदरी नाम V. 24.3°c ततश्च द्वादशे मासे I. 18.8c ,, हनुमान्वाचा IV. 3.3a ,, हरिशार्दूल: IV. 67.35c , ख्यातुमारेभे VI. 39.33a ततवानुमताः सर्वे V. 61.15a ततश्चापि मयानीता VII. 98.5c ततश्चाराः सत्वरिताः VI. 29.17a ततश्चासीन्महानादः VI. 95.35a ततश्चिक्षेप शैलाग्रम् VI. 70.20c ततश्चिच्छेद सौमित्रिः VI. 71.89c ततश्चिताया वेगेन III. 72.5a ततश्चित्राणि माल्यानि II. I0.6c ततश्चिन्तामुपागमत् II. 62.3d ततश्ची रोत्तरासङ्ग: II. 50.48a ततश्चुकोप बलवान् VI. 67.102c ततश्चक्रोध राघव: I, 26.16d ततश्चे द्रजित नाम V. 58.127c ततश्चोन्मथ्य सहसा IV. 45.12c ततदिछत्त्वा च तान्पाशान् V. 53.35c ततदिछन्नभुजां श्रान्ताम् I. 26.18a ततः श्रान्तःहमुत्सङ्गम् V. 38.19a ,, श्रुतो मया शब्दः II. 64.15a , श्रु वा निनादं तम् V. 04.30a " , महाराजः II. I2.1a ,, श्वशुरमामन्य II. 118.52a ,, श्वसनचन्द्रार्क V. 58 167a , श्वेताम्बुदाकारः IV. II.16a | ततः षोडशमे वर्षे IV. 22.20a ,, स कदनं चक्रे VI. 97.-a ,, ,, कपिशार्दूल: V. 38.1a ,, ,, ,, V. 56.25c ,, ,, कर्मणा तस्य V. 49.la ,, सकामं सुग्रीवम् VI. I0.3ra , स कार्मुकी वाणी VII. 21.39a ,, ,, किंकरान्हत्वा V. 43.1a ,,, कुपितोऽनिल: VII. 35.6ob ,, ,, कृत्वां जगतीपमहान् V. 41.21a ,, संक्षे दयित्वा ताम् VI. I0I.43a ,, स गत्वा ताः पत्नी: I. 8.2_c ., सङ्गाद्गता धेनु: VII. 53.9a ,, स चिन्तयामास V. 2.30a ,, सचिवसंदिष्टाः VI. 31.23a ,, स जाम्बवन्तं च VI. 91.2a . ,, स जीमूतकृतप्रगादः IV. 14.22a सज्यं धनुः कृत्वा III. 3.10a संचोदमानो वै VI. 89.7a , स तत्स्यन्दननिःस्वनं च V. 48.20a ,, स तां कपिरभिपत्य पूजिताम् V. 7.Itha ,, स ताममरपुरोगमा पुरीम् VII. 70.7a ,, स तामातिहरं परं वरम् VII. 31.41a , स तेनाभिहतः VI. 59.6ra ,, ,, तेषां रुदतां महात्मनाम् II. I03.49a ,, ,, दण्डः काकु-स्थ VII. 80.2a ,, ,, धनुरुत्तमम् VI. 99.15b ,, संतप्तहृदयः I. 57.1a ,, संदर्शने तस्य II. 90.3a ,, संदिश्य सुग्रीवः IV. 13.la ,, संधाय सौमित्रिः VI. 89.4la ,, संध्या प्रवर्तते I. 26.32b ,, संध्यामुपस्थाय II. 32.3a ,, सपरिवार तम् IV. 27.37c ,, स पुरुषव्याघ्रः II. 32.28a. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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