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ततः शतसहस्रशः V. I.II7d ,, शतसहस्रेण VI. 54.18a ,, शतसहस्रैश्च VI. 4.67c ,, शत्रुघ्नभरती II. 75.9a ,, शत्रुघ्नवचनात् VI. 128.13a , , VI. I28.1ga ,, शत्रुजयं नाम VI. 128.31a ,, शयनमारोह V 22.8c , शरशतेनैव VI. 88.49a ,, शरसहस्राणि III. 25.38a
, VI. 103.6a शरसहस्रेण III. 25.6a
III. 28.17a ,, ,, VI. 88.56a
VI. 102.28a ,, शरानायततीक्ष्णशल्यान V. 48.28a ,, शरान्दाशरथिः VI. 88.37a ,, शरासनं गृह्य VII. I8.14a
शरीर संक्षिप्य V. I.I97a शरेणामिहतः IV. I7.ra
शेरैभिन्नभुजान्तरः कपि: V. 47.25a ,, शरोघेर भिवृष्यमाणः VI. 70.20a ,, शशासेश्वरवत् VI. II.I7c ,, शाखान्तरे लीनम् V. 32.Ja
शाखामृगाः सर्वे IV. 2.10a
शान्तो भविष्यसि VI. 41.70d ,, शापभयाद्भीत: IV. II.64a
शासनमाज्ञाय II. 32.1a शास्त्रविपश्चित्त्वम् V. 52.8c शिखरमारुह्य VI. 4.93a , शितैः शोणितमांसरूषितैः VII. 6.70a ,, शिरः कम्पयित्वा VII. 4.2a ,, शिरसि कृत्वा तु II. II3.1a ., शिरस्ते निशितैः VI. 71.6ra ,, शिष्यादुपश्रुत्य III. 12.9c
| ततः शिष्यैः परिवृतः III. 12.21c
,, शीघ्रतरं गत्वा VI. 126.29 ,, शीतवहां नदीम् II. 49.rob ,, शुचिसमाचाराः II. 65.7a ,, शुभतरे तूणी III. 8.18a ,, शुभतरं वाक्यम् IV. 2.19c ___ , , VI. 18.4c
VI. 21.c
VI. 113.230
___VI. II9.Ic .. शुभं तापसयोग्यमन्नम् III.7.24a ,, शुभमतिः प्राज्ञः IV. 31.10a ,, शुश्रुविरे पथि II. 16.37b ,, शुश्रुवुराक्रुष्टम् VI. 24 3a ,, शून्यां गतजनाम् II. 37.28a
घोरा III. 20.Ia दीप्ता III. 33.1a दृष्ट्वा III. 32.1a नाम V. 24.43c
, VII. 9.35a ,, वाक्यम् III. I9.13c ,, , , III. 35.1a
,, वाक्यात् I. I.47a ,, शूर्पणखां दृष्ट्वा III. 34.1a ,, शूर्पनखी स्मित्वा III. 18.8c , शूलानि निश्चेरुः VI. I00.3a ,, शैलवरे रम्ये I. 70.31c ,, शैलेश्च खङ्गैश्च VI. 69.54c ,, शैलोपमं वीरम् VI. II2.22a ,, शोकाभिसंतप्तम् IV. 26.1a ,, शोकेन महता VII. 87.21c ,, ,, संवीतः II. 72.18a ,, शोणितकुम्भाश्च VI. 60.33a ,, शोणितदिग्धाङ्ग: VI. 58.50a
, VII. 21.33c
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