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________________ ३३८ ततः प्रवृत्तं तुमुलम् VI. 53.18a , ,, मधुरम् VII. 94.Ila ,, ,, सुक्रूरम् VI. I07.1a ,,, सुमहत् VI. 79.2a , , VII. 19.13c ,, प्रव्यथिता लोकाः VII. 28.15a ,, प्रव्यथिताः सर्वे III. II.I3a ,, प्रव्रजितो वनम् III. 37.Iod ,, प्रसर्पकेभ्यस्तु I. 14 53c ,, प्रसादितो देवैः I. 65.25a ,, प्रस्थापिता वयम् V. 35 67b ततः प्रस्थाप्य सुग्रीवः IV. 4I.Ia ,, प्रस्रवणं शैलम् V. 65.1a ,, प्रहर्षाद्भरतम् VI. 127 58a ,, प्रहस्तः कपिराजवाहिनीम् VI. 57.44a ,, प्रहस्तं निर्यान्तम् VI. 58.ra ,,, , VI. 58.5a ,, प्रहस्तस्य सुतम् V. 58.119c ,, प्रहस्तो वचनं बाये VI. 14.7b ,, प्रहस्य तद्रक्ष: VII. 67.20a ,, लवणः VII. 69.12a ,, , वरदः VII. 87.18c ,, प्रहृष्टः काकुत्स्थः VII. 95.12a ,, प्रहृष्टवदनः IV. 8.46a ,, प्रहृष्टः सुग्रीवः IV. 5 20a ,, ,, IV. 7. 23a " , , IV. 8.16a ,, प्रहृष्टाः कपय: VI. 44.31a ,, ,, पौरांस्ते I. II.25c ,,, प्लवघर्षभास्ते VI. I24.23a ,, प्रहृष्टो धर्मात्मा II II8.32a ,, ,, ,, v. 63.28a ,, , हनुमान् IV. 4.1a ,, प्राक्रमदिष्टिं ताम् I. 15.3a ,, प्रागुत्तरां गत्वा I. 40.24a ततः प्रागुत्तरां गत्वा I. 50.1a ,, प्राञ्जलिरब्रवीत् V. 65.9b ,, प्रादुष्कृतं पूर्वम् VII. 74.17c ,, प्राप्तमृषि ज्ञात्वा IV. 60.16a ,, प्राप्स्याम्यहं जराम् VII. 59.3d , प्राडनुप्राप्ता II. 63.14C ,, प्रास दशिखरम् VI. 41.88a ,, ,, हाणि II. 33.3a ,, प्रास्थानिकं कृत्वा II. 6".IIa ,, प्रियतरो नास्ति IV. 4I.48a ,, प्रियं वाक्यमुपेत्य राक्षसाः III. 51.20a ,, प्रियान्प्राप्य मनोभिरामान V. 5.21a ,, प्रियाहश्रवणा तदप्रियम् VI. II5.25a ,, प्रीतमना राजा I. 14.57c ,, ,, रामः I. 27.28a , , ,, VI. 118.IIa ,, प्रीतमनास्तेन I. I.67a ,, प्रीतः सहस्राक्ष: I. 62.26a ,, प्रीतेन मनसा VII. I3.26c , प्रीतेषु विधिवत् I. 14 550 , प्रीतो द्विजश्रेष: I. I3:33a ,, प्रीतोऽभवद्राजा I. 12.14a ,, प्रीतो महादेवः VII. 16.35a ,, ,, VII. 90.19c ,, प्रीत्यान्विता देवाः VII. 86.18a ,, प्रेक्ष्य हनूमन्तम् VI. 82.24a ,, प्लवङ्गाधिपमन्त्रिसत्तमः V. 47.16a ,, प्लवेनांशुमतीम् II. 55.22a. ,, शक्तिं महाशक्तिः VI. I00. Iga ,, शक्रधनुः प्रख्यम् VII. 19.18a ,, शकसुतो देवः VII. 28.7a ,, शको निरीक्ष्याथ VII. 29.18a ,, शकोपयानं तु III. 5.27a ,, शक्रोऽब्रवीत्सुरान् VII. 28.5d ,, शक्रो महच्चापम् VII. 28.45a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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