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________________ ३४१ ततः स पुर्याः सहसा महात्मा VI. 67.93a | ततः समुद्रद्वीपांश्च IV. 40.36a ,, स पुष्पकं त्यक्त्वा VII. 21.38c ,, समुद्रमासाद्य IV. 4I.I9c ,,, ,, दिव्यम् VI. I 22.24a ,, , VI. 126.49a , , प्रयतो वृद्धः VI. I28.5ga ., समुद्रो धर्मात्मा IV. II.I0a ,, ,, प्रालिभूत्वा II. 52.8a ,, समुपजिघ्रन्ती IV. 23a ., स बलवान्क्रुद्धः VII. 28.2a ,, समुपविष्टेषु VII. 99.2a स बाणासनशनकार्मुक: V. 47.18a ,, समृद्धाञ्छुभसस्यमालिनः II. 52.IOIC र सबालयद्वा सा II. 40.20a ,, समेतावतितीक्ष्णवेगी V. 48.26a ,, स भगसंविग्नः VI. 24.26c ,, संपन्नमित्युक्त्वा III. II.62a ,,, भार्य भयमोहमूर्छिता III. 18.26a ,, संप्रस्थितः काले II. 56.5a ,, ,, भार्यस्त्रि जटो महामुनिः II. 32.4,a ,, संप्रेक्ष्य जग्राह VI. 58.52a ,, ,, मथिताष्टाश्वम् V. 46.28a ,, संबोधयामि ते VI. I22.8d ,, मध्यं गतमंशुमन्तम् V. 5.1a ,, संभाविततराम् VI. 100.22a ,, गन्त्रयामःस VI. 31.4c ,, संभाषिता चैव V. 59.28c ,, समभवा II. II0.30 ,, ,, देवी V. 65.I7c ,, समभवयुद्धम् VII. I01.5a ,, संमानयामास II. 16.14c ,, समभिगच्छन्तम् III. 5.21a ,, स योजनशतम् VII. 29.17a ,, समभिपत्स्याम: VI. 64 24c ,, ,, रक्षोपतिर्महात्मा VI. 59.33a ,, समरकोपेन VI. 90. I7c , , , , 73.54a " , , ,, 39a ,, सरय्वां तमहं शयानम् II. 63 53c ,, समागतान्सर्वान् VII. II0.28a ,, सरलतालाश्च II. I.50a ,, समागमः पूर्वम् VI. 126.36c ,, स राक्षसो भीमः VI. 67.105a ,, समासाद्य महाधनं महत् II. 15.41a ,, ,, राजा जनकः I. 67.2a ,, समासाद्य रणे दशाननम् V. 4I.ga ,,, ,, तरुण: VII. 59.9a ,, समास्थाय रथं महारथः II. 45.34a ,, ,, ,, पिशिताशनानाम् VII. 33.23a ,, समीक्ष्य शयने II. 43.1a ,, ,, पुनरेव मूच्छितः II. 13.25a ,, समुत्कृष्टर वं निशम्य VI. 69.44a ,,, मनुजेन्द्रपुत्रः VII. 79.20a ,, समुत्थाय कुले कुले ते II. 82.32a ,, ,, ,, राजेन्द्र VII. I0.32a " , पुनः IV. 49.15a , , , शोकार्तः VII. 87.20c ,, समुत्थितः कल्यम् II. 83.1a ,, ,, रामो हरिवाहिनीपतिः VI. 38.14a , समुस्थिताः सर्वे VI. I20.17c ,, सराष्ट्र सगणम् IV. 27.35c ,, समुत्थितो रामः V. 38.23c ,, स रोषमापन्नः VI. 41.83a ,, समुत्पत्य महोग्रवेगः VI. 70.30c ,, स रौद्रामिरतः III. 9.22a ,, समुत्सादय हेमपुङ्खः III. 65.16c ,, संरक्तनयनः VII. 22.32a , समुद्योगमवेक्ष्य वीर्यवान् IV. 38.34a , सर्वाण्य नीकानि VI. 49.31a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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