SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1080
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४५ संप्रहृष्टसुहृज्ननः II. I7.1b संप्रहृष्टा वचः श्रुत्वा III. 22.6a संप्रहृष्टा विनेदुस्ते II. 91.61a संप्रहृष्टाः कथाः शुभाः II. 83.10b संप्रहृष्टेन मनसा I. 64.9c संप्रहृष्टैः सनगमः VI. 128.62d संप्रहृष्टो ददो राजा II. I07.4C संप्रहृष्टो महीपतिः II. 7.9d संप्रहृष्यामि वानर V. 40.2b संप्रादनं सुतायास्तु I. 68.16c संप्राप्त इति राक्षसाः VI. 31.3d संप्राप्तकालं दातव्यम् II. I00.32c संप्राप्तमवमानं यः VI. II5.6a संप्राहमुपजीविनाम् II. 31.22d संप्राप्तमृषिसत्तमम् VII. I.IId संप्राप्तस्त्वं महामुने I. 75.9b संप्राप्तं बत कैकेय्या II. 75.IIC संप्राप्तः सशरासनः III. 20.9d संप्राप्तः सुमहानयम् II. I2.19b संप्राप्तानतिथीनिव II. 26.2ob संप्राप्ता यत्र ते पापाः I. 28.20c संप्राप्ता विजने वने II. I04.24d संप्राप्ताः स्म समागताः VII. I08.20b संप्राप्तेह परंतप VI. I0.14b संप्राप्तो दर्शनं चैव I. 47.22c ,, दृढविक्रमः IV. 5.2b संप्राप्तोऽभिनदस्तस्य IV. 39.37a ,, मन्त्रकालो नः VI. 4.10IC ,, मे चिरेप्सितः VI. 100.46d ,, यज्ञसंविधम् VII. 94.24d ,, यत्र सांनिध्यम् VII. 31.7c संप्राप्तोऽयमरिवीर II. 96.23a संप्राप्तोऽयं विभीषण: VI. 41.68b संप्राप्तौ दुर्गमे पथि I. 48.6b संप्राप्तौ वरुणालयम् VI. 12.24d | संप्राप्य त्रिदिवं जग्मुः VII. II0.25a ,, मधुरामथ VII. I08.2b ,, महतीं श्रियम् IV. 27.28d ,. लक्ष्मण पेतुः VI. 88.18c संप्राप्यते महात्मानः VII. I.7a संप्रियत्वं महात्मनः II. I.44d संप्रीयेतामनोज्ञेन II. 48.20c संप्रेक्ष्य चीरं संत्रस्ता II. 37.9c , संचिन्त्य च राजपुत्रौ VI. 48.37c संप्रेषय हरीश्वरान् IV. 37.Iod संप्रेषित इवाम्भसः VII. 32.7b संप्लव त्वं महार्णवम् IV. 67.34b संवन्धकपुरोगमाः VII. 38.4d संवन्धेनानुबध्यताम् I. 72.8b संबभूवाग्रतः स्थिता II. I04.22d संबभूवातिबलिनोः III. 27.100 संबभूवात्र दारुणः VI. 44.13d संबभूवाद्भुतोपमः VI. 42.47d " , 44.12d , II6.34d संबभूवास्थितस्तत्र III. 24.18c संबुध्ये चाहमात्मानम् V. 34.24c संबोधयितुमिच्छति VI. I3.17d संबोधितः साधु विभीषणेन VI. I09.24b संभग्नाश्चासुरी तनुम् IV. II.54b संभवः कीर्तितस्त्वया VII. 4.4d संभवो रक्षसां पुरा VII. 4.Id संभारानभिषेकस्य VII. 63.10a संभाराः संभियन्तां ते I. 8.IIC , , I2.30 ,,, I2a , संघियन्ता मे I. 8.140 , संभ्रियन्तु मे I. 12.15b संभावयति कीर्तिमान् V. 39.10b संभावयितुमात्मना VI. 65.4b Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy