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________________ १२४६ संभाषणार्थे च मया V. 58.93c संभाषासंप्रदानेन VII. 64.5c संभाष्याभिप्रसाद्य च II. 5.8b संभाष्योत्थाप्य वीर्यवान् IV. 26.21d संभिन्नसंधिः प्रविकीर्णबन्धनः V. 47.36c संभूतस्त्वयि गर्हितः II.73.24d संभूता वाङमयी कन्या VII. I7.9c संभूतावृषिसत्तमौ VII. 57.4d संभूय च मदर्थोऽयम् VII. 44.20c संभृतानि नगे नगे II. 56.8d संभ्रमश्च न कर्तव्यः VI. II8.12a संभ्रमश्च विमुच्यताम् III. 22.4b संभ्रमस्त्यज्यतामेषः IV. 2.14a संभ्रमं दुःख तथा II. 60.5b संभ्रमाच्चाब्रवीद्राम VI. II4.25a संभ्रमात्तु दशग्रीवः III. 54.4a संभ्रमात्परिवृत्तोर्मिः III. 54.9c संभ्रमादब्रवीत्रस्ता II. 62.IIC संभ्रमाद्विकृतोत्साहः IV. 29.13c संभ्रमाविष्टहृदयः VI. 59.82c संभ्रमेणातपेन च II. 60.16b संभ्रमो रक्षसामेष VI. 33.25c , , , ,, 26a संभ्रान्त इदमब्रवीत् I. 32.25d संभ्रान्तभावः परदीनवक्रः IV. 31.36b संभ्रान्तमनसः सर्वे I. 18.41a , ,, 39.23c , VI. 79.6c सुराः VII. 86.6b संभ्रान्तहृदयो रामः III. 64.38c संभ्रान्तः परिवेष्टयताम् II. 32.37b ,, शोकवेगेन II. 63.35a संभ्रान्ता जनकात्मजा III. 2.15b , नष्टचेतसः IV. 51.4b निपपात ह IV. 10.26d संभ्रान्ताश्च सुराः सर्वे IV. 66.26a संभ्रान्ताः सलिलार्थिनः IV. 50.22d संभ्रान्तोरगराक्षसः VI. 21.32b , ,, 22.22h संधियेताभिषेचनम् II. 15.12d संमतश्चापि वृद्धानाम् II. I06.3c संमतस्त्रिषु लोकेषु II. I.32a संमतं धर्मचारिणाम् II. I05:39b संमतः सर्वलोकस्य I. 38.23a संमता ये च नैगमाः II. 83.1ID संमतोदारदर्शनौ IV. 31.42d समन्व्य मन्त्रिभिः सार्धम् VI. 41.58c ,, सचिवैः सह VI. 63.12b संमर्दितो राघवमारुतेन VI. 109.yd संमर्दो न भवेदिति II. 97.20b समानं मेनिरे सर्वाः I 16.30c संमान्यसलिलां शिवाम् II. 50.29b संमान्याभिप्रसाद्य च V. 38.55d संमार्गिता कथं देवी V. 58.5a संमार्जनविहीनानि II. 7I.37a संमूढ इव दुःखेन VII. 48.24a संमूढनिगमां सर्वाम् II. II4.13a संमूढमिव तद्बलम् I. 74.15b ,, त्रैलोक्यम् I. 65.15c संमूढा इव दुःखेन VII. 40.29c संमूढास्तमसा छन्नाः VII. 28.18c संमूछितो गह्वरगोवृषाणाम् IV. 30.50c संमोदित इवानिलः IV. I.86b संमोदितमहानिलम् VI. 75.57d , महापथाम् IV. 33.7d संमोदिता भाति बलाकपतिः IV. 28.236 संमोहमितरत्सुखम् VII. 84.9d संमोहादिह बालेन II. 63.12c संयच्छ वाजिनां रश्मीन् II. 40.22a संयतश्चरता श्रेष्ठः VI. 4.35c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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