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________________ १२४३ संपतद्भिश्च वानरैः VI. 41.5od संपतद्भिः समन्ततः VI. 44.24b " ,, ,, 100.8b , सुरगणैः I. 43.20c संपतन्तस्ततस्ततः VI. 90.3d संपतन्ति च मे शिष्याः VI. 124.16c ,, समन्ततः IV. I.26d ,, सहस्रशः VI. 33.23c संपन्त्यथ भूतानि VII. 6.56a संपत्स्यते वीरतमस्य कार्यम् VI. 21.34b संपन्नतरगोरसाः III. 16.7b संपन्नबलपौरुषान् VI. I20.9b संपन्नबलपौरुषाः VI. 120.14b संपन्नबलशालिनाम् IV. 26.4d संपन्नसरसोदकम् II. 56.13d संपन्नसलिलाशयान् II. 50.9b संपन्नं राज्यमिच्छंस्तु II. 96.17a ,, स्वरसंपदा I. 4.1gb संपन्नाः कुलजातिभिः VI. 125.45d संपन्नानि सुगन्धीनि III. 46.26a संपन्नां श्रियमन्विच्छन् II. 84.5a संपपात त्रिधा छिन्ना VI. Ioo.2ra संपरिक्रम्य हनुमान् V. 13.2a संपरिक्षिप्य राघवम् VI. 99.50d संपरिश्रान्तवाहनः II. 93.6b संपरिष्वज्य पूज्य च VI. 59.50b __ बाहुभ्याम् VI. 44.270 ,, 67.98c , भूमिपः II. 4.IIb , सुग्रीवम् IV.7.16c संपश्य स्वं नभो मेधैः IV. 28.2c संपश्यसि महीरुहान् III. 53.19b संपातिपनसादयः VI. 50.29d संपाति म गृध्रराट V. 35.62d संपतिर्नाम नाम्ना तु IV. 56.2a ,, वीर्यवान् VI. 126.42b संपातिवचनाचापि V. 13.51a संपातिश्च ममाग्रजः III. 14.33b संपातिस्तु प्रजनेन VI. 43.20a संपातिः पतगोत्तमः IV. 63.13d , पुनरब्रवीत् IV. 60.2d , प्रमतिस्तथा VI. 37.7b. संपातेर्वचनं श्रुत्वा IV. 64.2a संपातेः प्रीतिवर्धनः V. 35.66d संपादय सुकर्मणा VI. 88.27d संपादयामास तदा महात्मा VII. 54.19c संपिष्टा वसुधातले VI. 58.15d संपिष्टास्ते तदा युद्धे I. 45.43c संपीडिता तद्गतसर्वभावा V. 32.12b संपीडय च धनुर्घोरम् VI. 21.26a संपीड्योरसि सस्कन्धम् VI. 76.53a संपूज्य च महामुनिम् VII. 76.22b संपूज्यन्तां विभीषण VI. 122.4d संपूज्यमानं मुदितैर्महात्मभिः III. 30.41b संपूज्यमानो यातस्तु VII. 34.28a संपूज्यर्षिगणं ततः I. 45.9b संपूज्य विधिवद्वीरौ IV. 3.4c संपूर्णमपि चेदद्य III. 67.25a संपूर्णवक्रो न शशाक वक्तुम् VI. 67.163c संपूर्ण गिरिसंकाशम् VII. 6.66a ,, दशयोजनम् I. I.65d ,, योजनशतम् I. 30.18c संपूर्णा कृतविद्यानाम् I. 6.21c संपूर्णायतमुक्तेन VI. 89.40c संपूर्णा राक्षसैोरैः III. 48.10C संपूर्णाश्च शितैर्बाणैः IV. 3.17c संपूर्णा हरिपुङ्गवैः VI. 4.9Id संपूर्णा तस्य शासनात् VII. 3.32d संपूर्णा प्राविशद्राजा I. 77.8a , राक्षसोरैः V. 2.24a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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