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________________ १२४२ संध्योपासनतत्परम् VII. 34.12d संनता प्रियदर्शना II. 9.41b. संनताः फलभारेण III. II.48c सनतिश्च प्रभावश्च VI. 76.71a संनतो रावणानुजः VI. I9.Ib संनद्धस्तु महावीर्यः VI. 42.30a संनद्धः कवची खड्गी VI. 85.25a संनद्धानां तथा यूनाम् II. 84.8c संनद्धा निर्ययुस्तूर्णम् VII. 27.22c ,, मृष्टवाससः II. 3.Igd संनद्धावुद्यतायुधौ II. 96.20d संनद्य तु ससुग्रीवः VI. 41.25a , सुमहासत्त्वाः VII. 27.5c संनादं च महाबलम् VII. 39.22b संनादः सुमहान्राजन् VII. 15.15e संनादितवनांतराम् II. 50.23b संनाहजननी ह्येषा VI. 33.21a संनाहो राक्षसेन्द्राणाम् VI. 75.40c संनिकर्षमुपानयत् VI. 62.7d संनिकर्ष महायशाः VI. 83.7b ,, विनीतवत् VI. II4.31d संनिकर्षाञ्च पार्थिव VII. 59.5b संनिकर्षाच्च सौहार्दम् II. 8.28c संनिकर्षादितो मम VI. 29.14b संनिकर्षादिषीकाभिः II. 8.30c संनिकर्षे तु नः शूर III. 24.8a संनिकृष्टजलाशयः III. 15.4d संनिकृष्टपदन्यासः II. 45.18c संनिकृष्टं च यस्मंस्तु III. 15.5c संनिकृष्टानिमान्सर्वान् II. 2.10c संनिजघ्नु: पदान्यपि VI. 4.64d संनिदेशे पितुस्तिष्ठ II. 18.35a संनिधायायुधं क्षिप्रम् III. 72.2IC संनिपत्य च रक्षांसि VI. 65.42a , महातेजा: VI. 91.2c संनिपत्येदमब्रवीत् III. 27.Id संनिपातस्तयोश्वासीत् VI. 90.52a संनिपातं मुहुर्मुहुः VI. 88.72b संनिपेततुरोजसा VI. 90.51d संनिबद्धं हि श्लोकानाम् VII. 94.25a संनियच्छति मे क्रोधम् V. 22.3a संनिरीक्ष्य च सर्वशः III. 61.2b संनिरुद्धग्रहगणम् III. 64.6oa संनिरुद्धजला नदी VII. 32. Igb संनिरुद्धं यथा पुरा VII. 36.5d संनिरुद्धाग्निपुष्पकम् VII. 24.10b संनिरोद्धमवाङ्मुखः IV. 59.13d संनिलीनमहोरगः IV. 67.46b संनिवर्तयितुं बुद्धिः II. 34.326 संनिवर्तितुमर्हथ IV. 41.46d संनिवर्त्य जनं सर्वम् II. I7.2IC ,, प्रधावत: VI. 50.IId , मनोजवम् VI. 48.35b , न्यवर्तत VI. 83.6d ,, परानीकम् VI. 82.20a , विभीषणः VI. 84.8b संनिविष्टं गिरौ तस्मिन् VII. I4.4a संनिविष्टः समुद्रस्य VI. 3I.I9a ,, , ,, 33.15c संनिविष्टौ महायुते VI. 20.5d संनिवृत्तावुपागम्य VII. 32.17c संनिवृत्य यथा पुरा VII. 7.46b संनिवेद्य यथान्यायम् II. 56.18c संनिवेशं ततश्चक्रुः IV. 64.4c संनिवेश्य वसुं तदा VII. 54.13d ,, सतां सेनाम् II. 85.15a संन्यस्य शिखरं गिरेः VI. IOI.39b संन्यासं पादुके ततः II. II5.15b संपतद्भिरयोध्यायाम् II. II4.27a | संपतद्धिर्विरुरुचे VI. II.21c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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