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________________ १२१२ सर्वमप्रतिकूलयन II. 52.76b सर्वमप्यवकाशं च V. 12.17a सर्वमर्थं च दर्शिता V. 65.17d ,, प्रकाशिता V. 59.28d सर्वमर्मसु ताडिता: VI. 44.21b सर्वमस्य मुसत्कृतम् II. II7.6b सर्वमाख्यात मा चिरम् VII. 88.17d सर्वमाख्यातुमर्हसि IV. 5.gb सर्वमाख्याहि पृच्छतः IV.60.21d सर्वमाचक्ष्व तत्त्वेन VI. 3.5c सर्वमापो भवन्विह VII. 98.lod सर्वमायुधमादाय II. 30 31c सर्वमाशु विचेतव्यम् IV. 42.Iga. सर्वमासीत्सुसंतुष्टम् I. 53.5a सर्वमुक्तं यथादिष्टम् VI. 20.15a सर्वमेतच्चतुष्टयम् II. 23.31b सर्वमेतच्छ्रतं त्वया VII. 36.51b सर्वमेतत्समालोक्य IV. 41.46a सर्वमेतदुपस्कृतम् II. 79.10b सर्वमेतद्वले ग्राह्यम् VI. I7.24c सर्वमेतद्यथाकामम् VI. 83.30b सर्वमेतद्यथातत्त्वम् II. 96.100 सर्वमेतद्यथोक्तं ते I. 47.8c सर्वमेतद्रथस्थेन VI. I0.1.20c सर्वमेतद्विचेतव्यम् IV. 43.59a सर्वमेतद्विजार्थ मे VII. 60.14C सर्वमेतन्न संशयः I. 53.15b सर्वमेतन्महाबाहो VI. I26.9a सर्वमेतन्महाराज VI. 12.29a सर्वमेवमुहृजनम् II. 30.28d सर्वमेवात्र कल्याणम् II. III.30c सर्वमेवानुपश्यत IV. 41 IOD , ,, I2b सर्वमेवाभिषेकार्थम् VI. 128.25a सर्वमेवाविभक्तं नौ VII. 34.4IC सर्वमेवोपकल्प्यताम् II. 3.4d सर्वमौशनसं धनम् IV. 5I.I3c सर्वयत्नेन महता VI. I00.39e , 105.30c सर्वयन्त्रायुधवती I. 5.10c सर्वरक्षास्यशेषत: V. 58.51d सर्वरत्नमयः श्रीमान् IV. 41.40a सर्वरत्नमयश्चित्रैः IV. 43.42c सर्वरत्नविभूषितम् V. 9.IId VI. I28.54b सर्वरत्नविभूषितान् VI. 128.49d सर्वरत्नविभूषिताम् II. 86.19d सर्वरत्नसमन्विताः I. 18.19d सर्वरत्नसमाकीर्णाम् I. 5.16c सर्वरत्नसमायुक्तम् VI. I28.70c सर्वराक्षसपुंगवः VI. 60.89b सर्वराक्षससङ्घानाम् V. 59.142 सर्वरात्रमवर्तत VI. I07.65d सर्वक्षहरिसङ्घानाम् V. 35.50c सर्वाणामधिपतिः VI. 27.9c सर्वर्तुकांश्च देशेषु IV. 47.5a सर्वर्तुकुसुमै रम्यैः V. 15.5a सर्वर्तुपुष्पैर्निचितम् V. 15.13c सर्वर्तुफलपुष्पितैः V. 2.13b सर्वर्तुघूपभोग्यत्वात् VII. 2.10a सर्वर्तुसुखदं शुभम् VII. 15.39d सर्वर्तुसुखसेव्यानि IV. 43.46a सर्वलङ्काविनाशिनीम् V. 51.34d सर्वलक्षणपूजितः II. 26.16b सर्वलक्षणयुक्तता V. 49.17d सवलक्षणलक्षितौ I.4.14b सर्वलक्षणसंपन्नम् II. 65.10a III. 17.34a सर्वलक्षणसंपन्ना I. I.27c सर्वलक्षणसंपन्नाम् III. I4.22c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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