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________________ ११८३ स निश्चितां मतिं कृत्वा I. 8.3a , निहस्य महाबाहुः I. I.56a , निःश्वसन्मुनिवरः I. 63.12c ,, निःश्वस्य महारोषः IV. 16.14a ,, निःश्वस्योष्णमैक्ष्वाक: II. 38.2c ,, नीलमिव जीमूतम् VI. I0I.38a ,, नूनं क्वचिदेवाद्य II. 42.16a , नृपेणाभ्यनुज्ञातः I. II.22a ,, नेमिघोषेण महान् VI. II.9c ,, नेह वाली दुष्टात्मा IV. 2.16c ,, नो भर्ता भविष्यति I. 32.22d संछिन्नहृदयं तत्र VI. 79.39c सन्ततिश्च यथा दृष्टा IV. 21.10a सन्तश्चारित्रभूषणाः VI. II3.42d सन्तः सदसि संमताः II. 72.24d ,, मुकृतिनो यथा IV. 18.31d सन्तापयन्तस्त्रील्लोकान् VII. 5.IIC सन्ति कोट्यगतोऽनघ IV. 20.27d ,, चौघबलाः केचित् V. 43.23a ,, , , VI. 41.48a ,, तत्र वनौकसः V. 39.38b , , ,, 68.21b दुःसंस्थिताः कुब्जे II. 9.40c धर्मोपधासक्ताः II. 23.8c मे कुशला वैद्याः II. I0.30c .,. राघवनन्दन VII. 33.22b ,, वानर राघवे V. 37.15d ,, वायुबलोपमाः V. 43.23b , शुष्काणि काष्टानि II. 47.8a ,, स्निग्धाश्च ये चान्ये I. I3.28c सन्तीह गिरिदुर्गाणि III. 67.5c सन्तो विगतकल्मषाः III. 16.6d सन्त्यत्र वनचारिणः IV. 19.16b सन्त्यन्याः प्रमदास्तुभ्यम् VI. III.27a संदिदेशासनं ततः I. 2.26d सन्ध्यामन्वास्य पश्चिमाम् VII. 82.2b सन्नतिर्हि तवाख्याति V. 64.20c सन्न हर्षः सुतं प्रति II. 14.56d सन्नं शोकेन पार्थिवम् II. 43.1b सन्नामिव महाकीर्तिम् V. 19.IIa सन्ना शोकेन संनता II. 65.17b सन्मनुष्यमनो यथा I. 2.5d सन्मित्रं मित्रवत्सल IV. II.78b स न्यासविधिना दत्तः III. 9.18c सपक्षयोर्माल्यवतोः III. 51.3c सपक्षा इव पर्वताः II, 89.I9d सपक्षिपशुबान्धवाः VII. 109.15b सपक्षिराजोपमतुल्यवेग: V. 48.18a सपक्षिसङ्घा समृगा सवृक्षा V. 54.39c सपङ्कामनलंकाराम् V. 15.21c सपतयः सह बान्धवाः II. 33.16b सपताक इवाभाति IV. 67.47c सपताकं सवेदिकम् IV. 19.24b सपत्ररेखाणि सरोवनानि IV. 30.55c सपत्रवाजिता बाणाः VI. 88.31a. सपत्निवृद्धो या मे त्वम् II. 8.26c सपत्नीनां सहस्रेण VI. 123.15a सपल्यस्ता भृशातुराः VI. III.88d सपत्न्या तु गरस्तस्मै I. 70.37a ,, ,, ,, II. II0.24a सपल्या मम भाषितम् II. 21.22b सपत्न्यै गरलं ददौ II. IIO.Igd ,, सगरं ददौ I. 70.31b सपदातिगजं साश्वम् I. 55.4c सपदातिरथं रणे VII. I9.13b सपदि हरिवरस्ततो हनूमान् VI. II3.51a स पन्थाश्चित्रकूटस्य II. 55.9a सपन्नगमिवाचलम् VI. I00.40d सपन्नगमिवादाय V. 42.40c स पपात क्षितावसिः VI. 76.24d Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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