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________________ ११८४ स पपात खरो भूमौ III. 30.27a ,, ,, महाबाहुः III. 70.10a ,,, महीतले VI. 59.88d ,, ,, मुमोच च VI. 76.55d ,, ,, हतो भुवि VI. 98.22d , , , भूमौ III. 26.22a , परिव्राजकच्छद्म III. 49.8c ,, परिष्वज्य वैदेहीम् III. 51.37a ,, पर्जन्यइवाकाशे II. 16.3Ic ,, पर्वततटाग्रस्थः VI. 74.36a सपर्वतनदीगुहम् IV. 4I,IId स पर्वतनदीह्रदम् IV. 67.12d सपर्वतवनाकाशम् VI. 4.57c सपर्वतवनार्णवा I. I7.36b सपर्वतवना सर्वा VI. 60.47e सपर्वतवनां कृत्स्नाम् I. 40. 14a , , VII. 98.Ioa ,, भित्त्वा VI. 3.32c सपर्वतनोद्देशाम् V. 37.39a सपर्वतसमुद्राभ्याम् V. I.I26a. सपर्वतसरिद्रुमा VII. 22.27d स पर्वतं समारुह्य VII. 16.3a , पर्वताग्रमुत्क्षिप्य VI. 67.52a ,, पर्वतान्पक्षिगणान्सरांसि VI.74.49a सपर्वता मही वीर VII. II.I7a स पश्चात्तप्यते मूढः VII. I5.22c , , राजा II. 18.22c ,, पश्चिमेन द्वारेण VI. 81.3a ,, पश्यति फलं तस्य VII. I5.21c , पश्यन्विविधान्देशान् IV. 46.19a सपाण्डुराविद्धविमानमालिनीम् V. 2.53a. सपाण्डुरोरस्कमुदारवीर्यम् III. 51 45b सपातालं महार्णवम् VI. 22.1d स पात्यमानैर्गिरिशृङ्गवृक्षः VI. 60.56a ,, पादुकाभ्यां प्रथमं निवेद्य II. II5.240 । स पादुके ते भरतः स्वलंकृते II. II2.20a ,, पार्थिवो दीप्तिमवाप युक्तः I. 7.24c , पावकं पावकदीप्ततेजा: VI. 73.26a सपांसुः खरदारुणः VI. 78.I9b स पिता मम काकुत्स्थ I. 34.6a. ,, पितुर्वचनं श्रीमान् V. 33.24a ,, पितुचरणौ पूर्वम् II. I8.2a ,, पितृव्यस्य संकुद्धः VI. 90.46a ,, पित्रा च परित्यत्तः V. 38.32a ., पुच्छमुद्यम्य भुजंगकल्पम् VI. 74.45a. ,, पुण्यकर्मा भुवने द्विजर्षभः III. 5.42a सपुत्रजनबान्धवम् VI. 19.21b सपुत्रज्ञातिबान्धवम् VI. 41.79b सपुत्रदाराः काकुत्स्थ VII. I07.I3c ,, काकुत्स्थम् VII. I09.12c ,, सामात्याः V. 13.33a. सपुत्रपशुबान्धवाः VII. I09.13b सपुत्रपुत्रौ लोकेऽस्मिन् VII. III.8c सपुत्रपौत्रस्य तवाद्य युद्धे VI. 59.129d सपुत्रपौत्रं सामात्यम् I. 15.28c सपुत्रपौत्रः सगणः I. I.99c सपुत्रबलवाहनम् VI. 4I.7b सपुत्रबलवाहनः VII. 81.7b सपुत्रवान्धवं हत्वा V. 35.79a सपुत्रबान्धवामात्यः VI. 124.14a स पुत्रमेकं राज्याय I. 55.IIa. ,, पुत्रया त्वया नैव II. 14.17a सपुत्रराज्यां सिद्धार्थाम् III. 58.8a स पुत्रवधसंतप्तः VI. 92.19a " , , ,32a , पुत्रसहितं तात I. 6I.LI सपुत्रस्य सराज्यस्य III. 41.2c सपुत्रं तमिहानय I. I3.24d " , 25d , मूर्युपाघ्राय I. 22.3a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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