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________________ १९८२ सध्वजः सपताकश्च VI. 7I.Iga सध्वजानां पताकिनाम् VI. 127.13d , सहस्रशः VI. 94.Id' सध्वजैः सुविभूषितैः VI. 127.12b सनक्रमकरास्तथा VI. 21.31b सनक्रमीनमकर- VII. 32.35c सनक्षत्रं महीतले VI. 63.52d स नगाग्रे स्थितां लङ्काम् V. 2.8c सनत्कुमारकथितम् I. 9.19c सनत्कुमारो भगवान् I. 9.2c , , II.IIC सनदीगिरिकानना VI. 99.7b स नदीविपुलान्शैलान् III. 72.24c सनन्दिघोषां कल्याणीम् II. 89.12c स नरः पुण्यभाग्भुवि VII. I7.6d ,, नरो बालिशो भवेत् VI. I 3.2d ,, नर्मदाम्भसो वेगः VII. 32.6c ,, नलेन कृतः सेतुः VI. 22.70a ,, न वेदं नयानयो VI. I2.32d ,, नष्टां गां क्षुधातॊ वै VII. 53.10a ,, नः समीक्ष्य द्विजवर्य वृत्तम् II. 67.38a सनागनरदेवताः IV. 44.4b सनागभोगाचलशृङ्ग कल्यौ VI. 60.57a सनागयक्षगन्धर्व V. 46.8c सनागयक्षमुनिभिश्च पूजितः V. 47.27d सनागयोधाश्चगणा ननाद च II. 41.20d सनागः सहराक्षसः VI. 22.14d सनातनं नाद्य विहन्तुमर्हसि II, II0.37b सनातने वर्मनि संनिविष्टाम् V. 5.24a सनाथ इव सांप्रतम् III. 7.8d स नाथः क नु गच्छति II. 41.2d सनाथा विष्णुना देवाः VII. I04.15c सनाथो वानरेश्वर IV. 36.13b सनादः सरजस्तथा VII. 32.2Id स नानाकुसुमैः कीर्णः V. I.49a स नार्हसि नरोत्तम II. I08.7b ,, सनालैरिव पङ्कजैः VI. 95.16d ,, नाशयतु दुष्टात्मा II. 75.28c ,, नास्तिकेनाभिमुखो वुधः स्यात् II. I09.34d ,, नास्ति परमित्येतत् II. IOS.I7a ,, निकामं विमानेषु V. 6.1d ,, निकृत्तोऽपतद्भूमौ VI. 107.13a ,, निकृत्तौ भुजौ दृष्ट्वा III. 70.11a ,, निक्षिप्य शिरो भूमौ III. 68.18a ,, , सुतं ज्येष्टम् VII. 84.10a ,, निगृह्य तु तं बाष्पम् IV. 8.31a ,, ,, महाबाहुः III. 67.2a , निग्राह्यो न गृह्यते III. 4I.7d ,, निद्राक्लान्तसंवीतः IV. 31.38a ,, निपत्य महावीरः V. 62.37a ,, निमित्तैश्च दृष्टार्थः V. 55.34a ,, नियुक्तस्ततस्तेन V. 58.7a ,, निरर्थ गतजले II. I8.23c ,, निरस्तो विभीषण: VI. 68.23d ,, निरायुधमात्मानम् VI. 67.120c ,, निरीक्ष्य ततो धीरः III. 7.7a ,, निरुच्छासवत्तत्र VII. 14. 121 सनिर्घाता दिवोल्काश्च II. 4.17c , , VI. 106.2.1a स निर्जगामामरतुल्यविक्रमः V. 47.6d ,, निर्जित्य पुरी लङ्काम् V. 4.Ia ,, निर्ययो जनोधेन VII. I0I.2a ,, निर्यातो महावीर्यः VI. 51.20a ,, निर्यासेव वल्लरी III. 20.23d ,, निवृत्तो गुरोर्वाक्यम् VII. 18.I7c ,, ,, महाबलः IV. 12.23d ,, निवृत्याहवात्तस्मात् VI. SI.IC , निशम्य ततः श्रीमान् IV. 33.25c ,, निशम्येन्द्रसमानविक्रमौजा: VII. 86.2Id ,, निश्चितार्थः परवीरहन्ता V. 48.45a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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